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श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ
उस समय वहाँ आगम शास्त्रों के तत्त्ववेत्ता गौतमजी बागिया व्याख्यान श्रवण करने आये हुए थे। उनके सामने बड़े-बड़े मुनियों का भी प्रवचन देने का साहस न होता था । कारण यह था कि बागियाजी भगवती, पनवणा आदि आगमों के विशिष्ट जानकार थे। मुनिश्री चौथमलजी महाराज ने आत्मविश्वासपूर्वक व्याख्यान देना शुरू किया । उनकी ओजस्वी वाणी, मधुर शैली, गम्भीर घोष और आचारांग के अस्खलित उच्चारण तथा युक्तियुक्त एवं स्पष्ट भावार्थ को सुनकर श्रोतागण मुग्ध हो गए । बागियाजी बाग-बाग हो गए। उनके मुख उद्गार निकले
"महाराज साहब ! आपने अल्प समय में ऐसी विशिष्ट ज्ञानाराधना कर ली होगी, मुझे यह कल्पना भी नहीं थी । आपकी व्याख्यान शैली की रोचकता और स्पष्टता से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ । आपकी वैराग्यावस्था में मैंने आपको जो अपमानजनक शब्द कहे, उनके लिए मैं हृदय से क्षमायाचना करता हूँ ।"
एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : २२ :
बागियाजी की प्रशंसा आपश्री के प्रवचन की उत्कृष्ट प्रभावोत्पादकता का स्पष्ट प्रमाण है । इसके बाद तो आपके प्रवचनों की धूम ही मच गई ।,
श्रावकों ने वहाँ इन्हें आग्रहपूर्वक कुछ दिन के लिए रोक लिया । वहाँ से आपश्री विहार करके जावरा आये और गुरुवर श्रीजवाहरलालजी महाराज की सेवा में जुट गए। वहीं पं० नन्दलाल जी महाराज आदि विराजमान थे । उन्हीं की सेवा में रहकर आपने वहीं अपना चातुर्मास किया । पाँचवाँ चातुर्मास (सं० १९५७ ) : रामपुरा
जावरा चातुर्मास पूर्ण करके आपश्री वहां से विहार करके निम्बाहेडा पधारे । वहाँ उनकी मौसी रत्नाजी महाराज का स्वास्थ्य ठीक नहीं था । कुछ दिन वहाँ रुककर कुकडेश्वर (होल्कर स्टेट) में पधारे। दूसरी ओर से विहार करते हुए गुरुदेव श्री हीरालालजी महाराज भी वहाँ आ पहुँचे । वहाँ से रामपुरा आए और वहीं वर्षावास किया । वर्षावास में कितने ही बालकों को तत्त्वज्ञान सिखाया और कई प्रवचन दिए ।
छठा वर्षावास (सं० १९५८ ) : मन्दसौर
रामपुरा का चातुर्मास पूर्ण करके मुनिश्री चौथमलजी महाराज अनेक स्थानों को अपने चरण स्पर्श से पवित्र करते हुए मन्दसौर पधारे । यहीं चातुर्मास किया । इस चातुर्मास की विशेषता यह थी कि यह वर्षावास आपने स्वतन्त्ररूप से किया। चार मास तक जनता आपश्री के प्रवचनों से लाभान्वित होती रही ।
सातवां चातुर्मास (सं० १९५६ ) : नोमच
मन्दसौर चातुर्मास के बाद आपश्री विहार करते हुए खाचरोद पधारे । वहाँ आप गुरु श्री जवाहरलालजी महाराज की सेवा में रहे । वहाँ अनेक संत एकत्र हो गये । वर्षा ऋतु निकट आने लगी । इन्दौर का श्री संघ, धार से श्री मोतीलालजी आदि और उज्जैन से श्री हजारीमलजी आदि अपने-अपने यहाँ चातुर्मास का निमन्त्रण देने आए। उज्जैन संघ ने तो चौथमलजी महाराज के चातुर्मास के लिए खास प्रार्थना की । लेकिन उनके भाग्य में आपश्री की मंगलमयवाणी सुनने का योग न था । श्री चौथमल जी महाराज को उनके गुरुदेव ताल (जावरा ) में चातुर्मास की आज्ञा प्रदान करने वाले थे तभी बड़ी सादड़ी का श्री संघ आ पहुंचा। बड़ी सादड़ी में अधिक उपकार की संभावना से आपकी प्रार्थना पर गुरुदेव ने बड़ी सादड़ी चातुर्मास की स्वीकृति प्रदान करदी | तदनुसार आपने बड़ी सादड़ी की ओर विहार करने का विचार किया । मन्दसौर होते हुए आप
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