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: ४५१ : आत्मा : दर्शन और विज्ञान की दृष्टि में
शुद्ध आत्मा अरस, अरूप, अगंध, अव्यक्त, चैतन्य गुण वाला, अशब्द, अलिंगग्राह्य और संस्थान रहित है। आत्मा मन, वचन और कायरूप त्रिदण्ड से रहित, निर्द्वन्द्व-अकेला, निर्मम-ममत्वरहित, निष्कल-शरीररहित, निरालम्ब-परद्रव्यालम्बन से रहित, वीतराग, निर्दोष, मोहरहित, तथा निर्भय है । आत्मा निर्ग्रन्थ (ग्रन्थिरहित) है, नीराग है, निःशल्य (निदान, माया और मिथ्यादर्शनशल्य से रहित) है, सर्वदोषों से निर्मुक्त है, निष्काम (कामनारहित) है और निःक्रोध, निर्मान, तथा निर्भय है । आत्मा ज्ञायक है । मैं (आत्मा) न शरीर हूँ, न मन हूँ, न वाणी है और न उनका कारण हूँ। मैं न कर्ता हूँ, न करानेवाला हूँ और न कर्ता का अनुमोदक ही हूँ।
-समणसुत्त : प्रथम खण्ड : ज्योतिर्मुख : १५ आत्मसूत्र-१७७-१६१ नैयायिक, वैशेषिक, सांख्य, मीमांसक आदि आत्मा का अनेकत्व तो स्वीकार करते हैं, किन्तु साथ ही साथ आत्मा को सर्वव्यापक भी मानते हैं। भारतीय दर्शनशास्त्र में आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व मान कर भी उसे स्वदेह परिमाण मानना जैन-दर्शन की ही विशेषता है। रामानुज जिस प्रकार ज्ञान को संकोच विकासशाली मानते हैं, उसी प्रकार जैन दर्शन आत्मा को संकोचविकासशाली मानता है।
पाश्चात्य दर्शन प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो का मत है कि आत्माएँ दो प्रकार की होती हैं----एक आत्मा अमर है और दूसरी का क्षय हो जाता है।
अरस्तू ने अपनी पुस्तक "आत्मा पर" में लिखा है कि शरीर और आत्मा में वैसा सम्बन्ध है जैसा मोम में और मोमबत्ती में । मोम एक भौतिक पदार्थ है और मोमबत्ती उसका आकार है।
मुसलमानों में सूफी सम्प्रदाय के सन्त मौलाना जलालुद्दीन ने कहा था-"मैं सहस्रों बार इस पृथ्वी पर जन्म ले चुका हूँ।"
यद्यपि ईसाई धर्म पुनर्जन्म तथा आत्मा पर विश्वास नहीं करता, परन्तु पश्चिमी देशों के कई दार्शनिकों ने इस सिद्धान्त को स्वीकार किया है। एडविन आर्नेल्ड ने आत्मा के अनादित्व तथा अमरत्व को इन शब्दों में व्यक्त किया है।
"आत्मा अजन्मा और अमर है। कोई ऐसा समय न था जब यह नहीं थी, इसका अन्त और आरम्भ स्वप्न मात्र है। मृत्यु ने इसे कभी स्पर्श नहीं किया।"
विज्ञान की कसौटी पर
आधुनिक विज्ञान के अनुसार समस्त दृश्य और अदृश्य जगत सूक्ष्म तरंगों से बना है । इन तरंगों में तीन मुख्य तत्व हैं—जीवाणु, शक्ति और विचार ।
आत्मा इन तीनों का ही एक विशिष्ट स्वरूप है, मृत्यु के उपरान्त आत्मा स्वकीय प्रेरणानुसार किसी भी देह, पदार्थ या स्वरूप का निर्माण या विलय कर सकती है । आत्मा का सशरीर सूक्ष्म शरीर के नाम से जाना जाता है । यह सूक्ष्म शरीर न्यूट्रिनों नामक कणों से निर्मित होता है। न्यूट्रिन कण अदृश्य, आवेश रहित और इतने हल्के होते हैं कि इनमें मात्रा और भार लगभग नहीं के बराबर होता है। ये भी स्थिर नहीं रह सकते और प्रकाश की तीव्र गति से सदा चलते रहते हैं।
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