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________________ : ४४७ : वैराग्य-उपदेश प्रधान पद लावणी : सास-ब (तर्ज-ख्याल ) सास - बचन ये सत्य हमारा मान, जैन धर्म झूठा मत कर तान । टेर। जैन धर्म है नास्तिक जग में, बोले केइ इन्सान । बहू - दया दान ईश्वर नहीं माने ये, नास्तिक पहचान । जगत् में जैन धर्म परधान, सासुजी मत कर खेंचातान |१| जैन धर्म की निन्दा सासु, मुझ से सुनी न जावे । ईश्वर भक्ति दया दान सत जैन धर्म समझावे |२| सास- मैं समझी थी बाली भोली, तू निकली होशियार । करे सामना उत्तर देवे, शर्म न रक्खें लगार |३| बहू - सुनी-सुनी बातों पर सासु दिया आपने कान । जैन धर्म तो पूरा आस्तिक माने है भगवान |४| सास- बांध मुखपत्ति करे सामायिक, राखे पुंजनी पास | बात बहु आच्छी नहीं लागे, आवे मुझने हास |५| बहू - जीव दया हित बांधु मुखपत्ति, राखुं जो नहीं करे सामायिक सासु, वो श्री जैन दिवाकर स्मृति- ग्रन्थ Jain Education International - बहू-संवाद सास - जैन धर्म के साधु तेरे, मुझे पसन्द नहीं आवे । मुख पर बांधे सदा मुखपत्ति, माँग माँग कर खावे |७| बहू - जैन धर्म के मुनि जगत में होते हैं गुणवान । कनक कामिनी के त्यागी हैं, नशा पत्ता पछखान |८| देवता, जो दृढ़ धर्म के माईं । 'चौथमल' कहे सुभद्रा ने सासू को समझाई || कवि - डीगा नहीं सकता है ( लावणी-संग्रह ८, १९६३ ई.) PAR47 पुंजनी पास | भोगे यम त्रास | ६ | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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