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: ४४५ : वैराग्य-उपदेश प्रधान पद
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श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
गया बालपन देख जवानी, यह भी हुई रवाना | वृद्धापन में नहीं सुधरी तो, होगा फिर पछताना | ३| वक्त खरीदी का है प्यारो, सोच-समझकर लेना । जो कर्जे से दाम लिया तो मुश्किल होगा देना |४| जो सोया है खोया उसने, जागा जिसने पाया । 'चौथमल' कहे सुखी बनेगा, ज्योति में ज्योति समाया | ५| १५. कल की कौन जाने
(तर्ज- जाओ - जाओ ए मेरे साधु )
जाने-जाने यह कौन जगत् में कल होने की बात । टेर । ज्योतिषी ने लग्न देखकर, निज कन्या परनाई । जाते सासरे विधवा हो गई, दे भावी कौन मिटाई |१| वशिष्ठ ऋषि कहे लग्न बता, कल राम राज्य हो जावे । उसी समय बनवास हुआ है रामायण बतलावे |२| राजमती हर्षधर बोली, बनू नेम पटनार । कुँवारी रहकर बनी साध्वी भावी के अनुसार | ३| खण्ड सातवाँ साधन धाया सुभूम चक्री राया। होनी की क्या उसको मालूम दरिया बीच समाया |४| कल यह होगा कल यह होगा क्यों तू मिथ्या ताने । कल की होनी को तो वो ही पूरण ज्ञानी जाने ॥५॥ सोलह वर्षों तक जीऊँगा, वीर स्वयं उच्चारा । रखो दृढ़ विश्वास उसी पर है वो तारण हारा |६| धर्मकाज कल करना चाहो, करो आज ही भाया । पाव पलक की ख़बर नहीं है 'चौथमल' जितलाया |७| १६. माया
(तर्ज - लावनी खड़ी )
यह माया नाते की औरत, यह किसी की सुन्दर-बनी नहीं । चाहे जितना करो जापता, इसके सर कोई धनी नहीं |टेर | यह माया आती नर घर के कर देता है मालोमाल । हर सूरत से हुए इकट्ठी, नई-नई लगा के थाल । देश-देश में खुलें दुकानें बना देती हैं हुण्डीवाल । भोला नर समझे नहीं दिल में गाढ़े उनके लगाते ताल । सेठानी मन में यूँ जाने, मेरी रात कोई जनी नहीं चाहे | १ |
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