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: ४४३ : वैराग्य-उपदेश प्रधान पद
श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
दोहा- -मा हणो मा हणो वचन है, देखो आँख्या खोल ।
सूत्र रहस्य जाने नहीं मूरख, खाली करे झकझोल । कहो वे चतुर हैं कि अज्ञान |४| तीनों मजहब का कह दिया हाल, इसी पै कर लेना तुम ख्याल । दो अब कुगुरू का संग टाल, बनो तुम षट्काया प्रतिपाल । दोहा - गुरु हीरालाल जी का हुक्म से नाथद्वारा माँय । किया चौमासा चौथमल, उन्नीसे साठ में आय || सुन के जीवरक्षा करो गुणगान | ५ | ११. अभिमान त्याग
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(तर्ज - तरकारी ले लो मालिन आई है बीकानेर की ) अभिमानी प्रानी, डरतो लाओ रे जरा राम को टेर। यौवन धन में हो मदमाता, कणगट ज्यू' रंग आणे । तेरे हित की बात कहे तो, क्यों तू उलटी ताने रे । १ । कन्या बेची, धन लियो एंची बात करे तू पेंची । मुरदा का ले खाँपन खेंची, हृदय कपट की कैंची रे | २ | घर का टंटा डाल न्याति में. तू तो धड़ा नखावे रे | आपस बीच लड़ा लोगों ने, पंच बन जावे रे | ३ | धर्म - ध्यान की कहे बतावे, हम को फुरसत नाहीं रे । नाटक गोठ व्याह में, दे तू दिवस बिताई रे |४| उपकार कियो नहीं किसी के ऊपर, खा-खा तन फुलावे रे। हीरा जैसो मनुष्य जन्म, क्यों वृथा गमावे रे |५| मारवाड़ में शहर सादड़ी, साल इक्यासी मांही रे । गुरु प्रसादे 'चौथमल' श्रावण में गाई रे।६।
१२. कर्म गति
(तर्ज - पंजी की )
कर्म गति भारी रे-२ नहीं टले कभी सुन जो नरनारी रेटेर । कर्म रेख पर मेख घरे, नहीं देख्यो कोई बलकारी रे । शाह को रङ्क, रङ्का को कर दे, छत्तरधारी रे | १| राजा राम को राज्य तिलक, मिलने की हो रही तैयारी रे। कर्मों ने ऐसी करी, भेजे विपिन मुझारी रे | २ | शीलवती भी सीता माता, जनक राजदुलारी रे। कर्मों ने वनवास दिया, फिरी मारी-मारी रे | ३ |
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