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:४४१ : वैराग्य-उपदेश प्रधान-पद
| श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
८. पत्नी का, पति को उपदेश (तर्ज-अनोखा कुंवर जी हो साहिबा झालो इं घर आय) अर्ज म्हारी सांभलो हो साहिबा ! मत निरखो पर नार ।टेर। सोना रूपा मिट्टी तणा हो साहिबा, प्याले दूध भराय । रूप तणो तो फेर है, हो साहिबा, भेद स्वाद में नाय ।१। धन घटे यौवन हटे हो साहिबा, तन से होय खराब । दण्ड भरे फिर रावले हो साहिबा, रहे कैसे मुख आब ।२। दंभ करे निज कंथ से, हो साहिबा, सो थारी किम होय । चोर कर्म दुनियां कहे हो साहिबा, प्राण देवोगा खोय ।३। रावण पद्मोत्तर जैसा, हो साहिबा, कीनी पर घर प्रीत । इसी अनीति योग से, हो साहिबा, पुरा हुआ फजीत ।४। पर नारी रत मानवी हो साहिबा, जाति से होवे बहार । बाल घात होती घणी, हो साहिबा, जावे नर्क द्वार ।५। मोटा कुल का ऊपन्या, हो साहिबा चालो चाल विचार । पर नारी माता गिनो, हो साहिबा शोभा हो संसार ।६। उन्नीसे इक्यासी साल में, हो साहिबा आया सेखे काल । गुरु प्रसादे 'चौथमल' कहे हो साहिबा, या मदारिया में ताल ।७।
६. सीधा और मोठा बोल
(तर्ज-पनजी मुंडे बोल) रसना सीधी बोल, वैरन सीधी बोल। थारे ने कारणिये जीवने दूखड़ा ऊपजे ए टेर। पाँचों माही तू ही ज मुखिया, अजब-गजब नखरारी ए। ऊँच-नीच नहीं सोचे बोले, मीठी खारी ए।१। माधव से सीधी नहीं बोली, शंका जरा नहीं राखीए । कौरव पाण्डव का युद्ध कराया, महाभारत साखी ए।२। वसु राजवी झूठ बोलने, नर्क बीच में जावे ए। तुझ कारण से जल की मच्छी, प्राण गंवावे ए।३। एक-एक अवगुण सर्व इंद्रियों में, चौड़े ही दर्शावे ए। खाय बिगाड़े बोल बिगाड़े, तुझ में दोय रहावे ए।४। ख्याल राग तो बिना सिखाया, तुझ ने केई आवे ए। धर्म तणा अक्षर की कहे तो, तू नट जावे ए।५।
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