________________
:४३१: भक्ति-स्तुति प्रधान-पद
श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ
शान्ति जाप मन माहीं जपता, चाहे सो फल पावे जी। ताव तिजारी दुःख दालिदर सब मिट जावेजी।३। विश्वसेन राजाजी के नन्दन, अचला दे रानी जाया जी। गुरु प्रसादे चौथमल कहे घणा सुहाया जी ।४।
४. महावीर का नाम म-हावीर मन मोहन प्रभु का, नाम है शान्ति करण सदा । हा-दिक भाव से उमग-उमगकर करता हूँ मैं स्मरण सदा । वी-त राग जिन देव विभू भव-सिंधु तारण तिरण सदा । र-मण करे तुम नाम हृदय नित्य, मिथ्या कुमतितम हरण सदा। प्र-णमत इन्द्र नरेन्द्र सुरासुर-अचित है तुम चरण सदा। भू-ति प्रज्ञ सर्वज्ञ चौथमल, दास तुम्हारे शरण सदा॥
५. वीर-जन्म आये आये हैं जगत-उद्धारक, तृशला जी के नन्द ।टेर। स्वर्ग बना नरलोक हो रहा, घर-घर हर्षानन्द । मंगल मधुरे गावे परियां, उत्सव कीना इन्द्र ।। कंचन वर्ण केहरी लक्षण, सोहे चरणारविन्द।। नैना निरखी मुदित हुए सब, प्रभु का मुखारविन्द ।२। संयम ले प्रभु केवल पाए, सेवे सुरनर वृन्द। वाणी अमृत पीते सब मिल, पावे मन आनन्द ।। अभय-दान निर्वद्य वचन में, ज्योतिष में ज्यों चंद। तप में उत्तम ब्रह्मचर्य है, जग में वीर जिनन्द ।४। कुवर सुबाहू को निस्तारा, जो था नृप फरजंद । शालिभद्र से सौभागी को, किया देव अहमिन्द्र ।। प्रभु को सुमिरे प्रभुता पावे, मिट जावे दुख द्वन्द। गुरु प्रसादे चौथमल कहे, वरते परमानन्द ।६।
६. गौतम गणधर
(तर्ज-जय जगदीश हरे) जय गौतम स्वामी, प्रभु जय गौतम स्वामी। ऋद्धि सिद्धि के दाता, प्रणम् सिर नामी ।ओउम्। वसुभूति के नन्दन, पृथ्वी के जाया, स्वामी........ कंचन वरण अनुपम, सुन्दर तन पाया ।१।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org