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| श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
:४१७ : प्रेरक प्रवचनांश
होती थी। उसमें राजस्थानी और मालवी शब्दों के साथ उर्दू का भी किंचित पुट होता था। उच्चारण साफ था आवाज बुलन्द और मधुर थी।"
स्वर्गीय निर्वाण प्राप्ति-पूज्य मुनिश्री के प्रवचन मलिन जीवन के प्रक्षालनार्थ जाह्नवीसलिल की भांति उपादेय एवं अनुकरणीय हैं । इनका अनुशीलन सन्तप्त मानस को अमरत्व प्रदान करेगा-ऐसी मेरी अचल आस्था है।
संदर्भ ग्रन्य(१) श्री केवल मुनि-एक क्रान्तदर्शी युगपुरुष संत जैन दिवाकर (२) श्री अशोक मुनि-दिवाकर रश्मियाँ (३) श्री रमेश मुनि-जैन दिवाकर संस्मरणों के आइने में
(४) तीर्थंकर-मुनि श्री चौथमलजी जन्म-शताब्दि अंक (वर्ष ७ अंक ७, ८, नवम्बरदिसम्बर १९७७ । परिचय एवं पताजैन कथा साहित्य के विशेषज्ञ अनेक समीक्षात्मक ग्रन्थों के लेखक प्रधानाचार्य संदीपनी महाविद्यालय, उज्जैन पता-मोहन निवास, कोठीरोड, उज्जैन
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६ "बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो प्रत्येक विषय पर तर्क-वितर्क करने को ए तैयार रहते हैं और उनकी बातों से ज्ञात होता है कि वे विविध 1 विषयों के वेत्ता हैं, मगर आश्चर्य यह देखकर होता है कि अपने ई । आन्तरिक जीवन के सम्बन्ध में वे एकदम अनभिज्ञ हैं। वे 'दिया-तले ३ अंधेरा' को कहावत चरितार्थ करते हैं। आंख दूसरों को देखती है, ३ अपने-आप को नहीं देखती । इसी प्रकार वे लोग भी सारी सृष्टि के रह१ स्यों पर तो बहस कर सकते हैं, मगर अपने को नहीं जानते । ३ ब्यावर, ८ सितम्बर, १९४१ -मुनिश्री चौथमलजी महाराज
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१ श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री जैन दिवाकर, एक विलक्षण व्यक्तित्व, तीर्थंकर मुनिश्री चौथमलजी
जन्म शताब्दि अंक पृष्ठ २१ एवं २२
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