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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ।
व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें : ३७० :
"चेतन रे थ कांई-कांई पाप कमाया, जिसका भेद जरा नहीं पाया। असत्य आल दिया पर के शिर, या थे गर्भ गलाया। झठी साक्षी भरी पंचां में, जाल कर खत वणाया। हरिया गरिया नाज बेचिया, सखरा में नखरा मिलाया । कम दीधा ने ज्यादा लीधा, नहीं गरीबों पर ध्यान लगाया ।। षट् काया की हिंसा कराई, ता विच धर्म बताया। कूड उपदेश देई लोका नै, उलटे रास्ते चलाया ।। कर-कर कपट-निपट चतुराई, आसन दृढ़ जमाया। विन साधु-साधु कहैला कर, जग को ठग-ठग खाया ।। धर्म नाम से धन ले पर से घर धन्धा में लगाया। चार संघ की निन्दा कीनी, अणगल जल वपराया ।। पापी का बण पक्षदार ने सत्यवादी ने सताया।
बन के मिथ्यात्वी कुगुरु मान्या न निग्रन्थ को मनाया ।। इस प्रकार की प्रवृत्ति वालों एवं जो पापकर्म तो करते हैं, लेकिन उसका फल नहीं चाहते और पुण्य कर्म तो करते नहीं, किन्तु उसका फल चाहते हैं उनको यथार्थ का मान कराते हुए कहते हैं
मन तो चाहे मैं सुख भोगू कर्म कटावे घास । मन चाहे राजा बन जाऊं कर्म बनावे दास ॥ तिल घटे न राई बढ़े जो देखे ज्ञानी भाव। शुभाशुभ संचित कर्म का मिले फल बिन चाव ।।
–महाबल मलया सुन्दरी चरित्र इसीलिये पापकर्म से दूर रहकर व्यक्ति को सदैव शुभ कार्यों में प्रवृत्ति करना चाहिये और इन शुभ कार्यों की रूपरेखा संक्षेप में जिन शब्दों में पूज्य श्री जैन दिवाकरजी महाराज ने स्पष्ट की है, वह तो अनूठी ही है। उसमें सभी धर्मों और उनके शास्त्रों तथा आचार्यों के भावों को ही प्रस्तुत कर दिया है। 'परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्' के भाव को यथातथ्य रूप में अवतरित कर दिया है कि
किसी जीव को नहीं सताना कटुक वचन नहीं कहना। प्रभूता पा अभिमान न करना नम्र भाव से रहना ।।
-वही कर्म निर्जरा का साधन तप है। तीर्थंकरों ने भी तप करके निर्वाण पद की प्राप्ति की है। तपस्वी के चरणों में बड़े-बड़े इन्द्र, नरेन्द्र और महेन्द्र भी नमस्कार करते हैं। पूणिया श्रावक जैसे एक सामान्य गृहस्थ के घर श्रेणिक जैसा राजा भी मांगने आया था, तो उसका कारण तपसाधना ही थी । तप का इतना माहात्म्य होते हुए भी आज तप के प्रति व्यक्तियों की श्रद्धा उठती जा रही हैं और तप करना भूखों मरना जैसे शब्दों का प्रयोग करके कई लोग तपस्वी की खिल्ली उड़ाते हैं। ऐसे लोगों को तप की महिमा और उससे प्राप्त होने वाले फल को बताते हुए श्री जैन दिवाकरजी महाराज "कमला सुन्दर चरित्र" में कहते हैं
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