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: ३२१ : संगठनात्मक शक्ति के जीवित स्मारक
हुआ । तत्काल महिला आश्रम की योजना बनी और इसके संचालन के लिए ५००० रुपये का वचन भी दिया गया। इस प्रकार जोधपुर में महिला आश्रम की स्थापना सुन्दर ढंग से हो गई।
यादगिरी का पुस्तकालय पुस्तकालय पुस्तकों का ही नहीं, ज्ञान का भी भंडार होता है। यह सर्व-साधारण के ज्ञानोपार्जन के लिए सर्वाधिक उपयोगी साधन है । इसकी उपयोगिता और जैन दिवाकरजी महाराज की प्रेरणा से यादगिरी श्री संघ ने सर्वसाधारण के लिए एक पुस्तकालय की स्थापना की।
अहमदनगर में ओसवाल निराश्रित फंड अहमदनगर चातुर्मास के अवसर पर जैन दिवाकरजी महाराज ने निर्धन और निराश्रित स्वधर्मी भाइयों की सहायता हेतु श्रावकों को प्रेरणा दी। परिणामस्वरूप स्थानीय संघ ने 'ओसवाल निराश्रित फंड' की योजना बनाई। इस परोपकारी कार्य हेतु उदार हृदय दानी सज्जनों से १५,००० रुपये भी प्राप्त हो गए।
मन्दसौर में समाज-हितैषी श्रावक मंडल वि० सं० १६६६ के मन्दसौर चातुर्मास के दौरान आपकी प्रेरणा से पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी महाराज-सम्प्रदाय के हितैषी मंडल की स्थापना हुई । इसका संक्षिप्त नाम 'समाज हितैषी श्रावक मंडल' है। सं० २००१ में उज्जैन में इस मण्डल का अधिवेशन भी हआ। मण्डल को आर्थिक दृष्टि से समृद्ध और सुदृढ़ बनाने के लिए कार्यकर्ताओं ने हजारों रुपये का चन्दा भी इकट्ठा किया।
चतुर्थ जैन वृद्धाश्रम - जैन दिवाकरजी महाराज का चातुर्मास (वि० सं० २००० का) चित्तौड़गढ़ में था। वहां आपने श्रावकों को प्रेरणा देते हुये फरमाया-'समाज के वृद्धों, अपाहिजों की सेवा करना पुण्य का कार्य है । इनकी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए । ये परिवार के ही नहीं, समाज के भी महत्वपूर्ण अंग हैं । वृद्धावस्था में इनकी अध्यात्म-साधना, चिन्तन-मनन एवं अन्य धार्मिक क्रिया-कलापों के लिए समुचित साधन जुटाना समाज का कर्तव्य है।'
आपके इन वचनों से समाज में जागति आई। चतुर्थ वद्धाश्रम की स्थापना हुई। इस कार्य के लिए जब जैन दिवाकरजी महाराज का २००२ का चातुर्मास इन्दौर में था तब राय बहादुर सेठ कन्हैयालालजी सुगनचन्दजी भंडारी ने एवं समाज के दानवीर श्रीमन्तों एवं सामान्य सद्गृहस्थों ने मुक्तहस्त से दान देकर २०००० रु० एकत्र करके संस्था की जड़ें मजबूत की।
इस संस्था ने आर्थिक सहायता देकर अनेक वृद्धों का भरण-पोषण किया और उनकी अध्यात्म-साधना हेतु समुचित साधन जुटाए हैं।
आज भी चित्तौड़ किले पर यह संस्था अपना पुनीत सेवा कार्य कर रही है।
ये और इस प्रकार की विभिन्न संस्थाएँ जो आपश्री की प्ररणा से प्रारम्भ हुई, अपने-अपने क्षेत्र में कार्यशील हैं। इनके द्वारा समाज का बहुमुखी कार्य हो रहा है।
ये संस्थाएँ वे पौधे हैं, जिनकी जड़ें जैन दिवाकरजी महाराज रूपी सूर्य की धूप से सुदृढ़ हो रही हैं, जिनके पत्ते और डालियों एवं टहनियों पर उनके नाम का प्रकाश पड़ रहा है। ये ऐसे स्मारक हैं जो आपकी स्मृति को स्थायी रखकर भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को भी ज्ञान और सेवा का प्रकाश दिखाते रहेंगे और देते रहेंगे जैन दिवाकर रूपी दिवाकर के समान प्रेरणा !
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