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:२४५ : श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम
श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ
सार्थक नाम
श्री अमरचन्द मोदी
(मन्त्री-'महावीर जैन नवयुवक संघ', ब्यावर) स्वर्गीय जैन दिवाकर, जगत्वल्लभ, प्रसिद्धवक्ता, पूज्य गुरुदेव पं० मुनि श्री चौथमलजी महाराज साहब एक महान् तेजस्वी पुण्यात्मा संत थे।
आपने सूर्य के समान, ज्ञान रूपी प्रकाश से जैनधर्म को भारत के कोने-कोने में चमकाया अतः आप "जैन दिवाकर" कहलाये । आप अहिंसा, सत्य व क्षमा की दिव्य मूर्ति थे, आपकी यशकीर्ति सारे जग में फैली अतः आप "जगत् बल्लभ" कहलाये। आपकी वाणी के प्रभाव से हजारोंलाखों जीवों को अभयदान मिला। आपके सदूपदेशों से हजारों-लाखों लोगों ने शराब, मांस आदि कुव्यसनों के त्याग किए । आपके व्याख्यान में जैन-अजैन, राजा, महाराजा आदि छत्तीसों कौम के लोग सम्मिलित होते थे, एक तरह से समवशरण की रचना देखने को मिलती थी अतः आप "प्रसिद्ध वक्ता" कहलाए।
आपका साहित्य उच्चकोटि का है जिसे पढ़कर मानव अपना जीवन उच्च व आदर्शमय बना सकता है। आपके द्वारा रचित कई भजन, आरतियां तो ऐसी हैं जो सार्वजनिक रूप से प्रातःकालीन प्रार्थना में घर-घर में बोली जाती हैं, जो जैन समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हुई हैं, जैसे 'ऊँज अरिहंताणं', 'जय गौतम स्वामी, 'साता कीजो जी शांतिनाथ प्रभु', 'ऋषभ कन्हैया लाला आदि । आप अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे अतः आप 'पंडित' कहलाए।
सदैव संघठन व प्रेम के हामी थे। आपका हृदय विशाल था, विनय और सहनशीलता आपके स्वाभाविक गुण थे अत: आप एक कुशल 'संत' कहलाये।
श्रद्धा की वह विराट् मूर्ति, विशिष्ट बुद्धिशाली, गम्भीरता का वह शान्त रलाकर सदैव जनता को लाभान्वित करता रहा, ऐसे पुण्यशाली संत के चरणों में नतमस्तक होता हुआ श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हूँ।
"जब तक सूरज चांद रहेंगे, जैन दिवाकर याद रहेंगे।
गूंज रहा है नारा घर-घर, धन्य धन्य गुरु जैन दिवाकर ॥" भक्त सहारे
* श्री दिनेश मुनि जैन दिवाकर उज्ज्वल तारे । प्राण पियारे भक्त सहारे। करुणा सागर मोहन गारे। शरणागत को पार उतारे ॥१॥
नहीं निहारी छवि तुम्हारी। नाम स्मरण है मंगलकारी ॥ सद्गुण क्यारी सौरभ न्यारी।
महिमा-भारी वाणी प्यारी ॥२॥ गुण-गरिमा का गान करूंगा। पार कहाँ मैं पाऊँगा । भक्ति नाव में चढ़ जाऊँगा। भला क्यों न तिर जाऊँगा ॥३॥
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