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: २४३ : श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति भरा प्रणाम
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श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
वन्दना हजार को
- श्री विमलमुनि 'धर्म भूषण' दिव्य ज्योति आप में थी, भवन में समाई है । गाँव गाँव घूमकर, घर घर जड़ जैन धर्म की जमाई है । गद्य-पद्य ग्रन्थों द्वारा वीर वाणी का प्रचार, किया झोंपड़ी से लेके राज-महलों माँई है । " विमल" श्री जैन भानु हो गया अदृश्य आज, उन्हीं के ज्ञान की रह गई यहाँ ललाई है ॥ दिव्य ज्ञानवान मार्तण्ड मुनि चौथमल, लेकर जन्म कियो काम उपकार को । बोले या न बोले पर दर्शक इच्छते यही, देखते सदा ही रहे इनके दीदार को । श्रोताओं को छोड़ गये सुखों में तल्लीन हुए, आप सा सुनावें कौन सुज्ञान संसार को । मेरे देव होंगे जहाँ, वहीं पे स्वीकार लेंगे, आशा है " विमल" मेरी वन्दन हजार को ॥
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लाखों में नहीं थी वह भक्तों के सुहृदय अथक परिश्रम से
दिव्य ज्ञान की खान
* श्री जीतमल चोपड़ा ( अजमेर)
दिव्य ज्ञान की खान दिवाकर, दिव्य ज्ञान की खान ||टेर || इस कलयुग में खूब बढ़ाई, जैन धर्म की शान | दिवाकर || जग जंजाल समझकर छोड़ा, किया आत्म-कल्याण |
हीरालालजी से गुरुवर से, खूब बढ़ाया ज्ञान ॥ दिवाकर || १ || देश-देश में विचर - विचर कर, तारे जीव महान ।
राजा-राणाओं तक पहुँचे, वीर का ले फरमान ॥ दिवाकर||२|| बड़े-बड़े लिख ग्रन्थ कविता, घर घर गुंजाया ज्ञान ।
संघ ऐक्य योजना में फूंकी, सबके पहले जान || दिवाकर || ३ || शोक ? शोक हा महा शोक है, कैसे करू बयान ।
कोटा में उस महापुरुष ने कर दिया महा प्रयाण ॥ दिवाकर ॥४॥ मर कर के भी अमर रहेंगे 'चौथ मुनि' गुणवान । 'जीत' शांतिमय हो आत्मा, यही विनय भगवान || दिवाकर ||५||
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