________________
: २४१ : श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम
श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ |
जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज
को सम्प्रदाय में न बाँध ४ श्री मानवमुनि (इन्दौर) जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज इस युग के एक महान् राष्ट्रसन्त हो गये हैं, उन्होंने जैन समाज की एकता के लिए सभी सम्प्रदाय मुनिराजों को संगठित बनाने का प्रयास कोटा चातुर्मास में किया। यह बड़ा पुरुषार्थ का काम हुआ। वे जैन समाज के ही नहीं अपितु मानव समाज के कल्याण के लिए ही अवतरित हुए थे। उनके प्रवचन में जैनों के अलावा हिन्द्र, मुस्लिम, सिक्ख तथा राजा-महाराजा, ठाकुर, जमींदार सब आते थे और एक साथ समान भाव से धर्मस्थान पर बैठते थे; किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं था।
धर्मोपदेश के प्रभाव से हजारों व्यक्तियों से शराब, मांस, पशुबलि का त्याग करवाया तथा लाखों पशओं को अभयदान दिलाया।
भगवान महावीर के सिद्धान्तों को स्वयं के जीवन में अपनाया जिनके रग-रग में सत्य-प्रेम, करुणा, अहिंसा का भाव भरा था। जैन समाज का गौरव बढ़ाया। आज उनका नश्वर शरीर नहीं है, पर उनके समन्वय विचार आज भी अमर हैं।
जैन दिवाकरजी महाराज सम्प्रदाय के सन्त-सतियाँ उनके मानव समाज के कल्याणकारी कार्य को उठा लें तो विज्ञान युग में महान् क्रान्तिकारी कार्य होगा।
उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि श्रद्धा-भक्ति से अर्पित कर सकेंगे। ------------ दिवाकर स्तुति
श्री गौतम मुनि (१) इस धवल धरा पर जैन दिवाकर, कल्प तरु सम पल्लवित हए। तमाच्छादित संसार बीच में, आलोक पुज सम उदित हुए।
विमल था व्यक्तित्व जिनका, निर्मल था संयम-महा ! आचार-था उज्ज्वल रविसम. धैर्य धरती सा अहा !
मानवता के थे उद्धारक, कैसे नर - नारी भूल पाएंगे। एकता के अग्रदूत मनस्वी, गौरव • गाथा गाएँगे।
-0-0-0--0-0-0-5
h-o-----------
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org