________________
:२११: श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-मरा प्रणाम
धर्म-ज्योति को नमन !
--श्री मिश्रीलालजी गंगवाल, इन्दौर परम श्रद्धय मुनि श्री चौथमलजी महाराज की गणना इस युग के उन महान् सन्तों में है, जिन्होंने पीड़ित मानवता के क्रन्दन को सना, समझा और उसके निदान में अपना जीवन अपित कर दिया। वे श्रमणधारा के तेजस्वी साधक थे । उनके उपचार के साधन भी अहिंसा-मूलक थे। उनका हृदय विशाल तथा कार्यक्षेत्र विस्तृत था । वे झोंपड़ी से लेकर महलों तक पहुँचते थे। उनकी दृष्टि में राजा-रंक, धर्म-जाति का भेद नहीं था। सबको समताभाव से वीरवाणी का अमृत-पान कराकर हजारों लोगों को भेदभाव बिना सन्मार्ग पर लगाने का मानवीय कार्य जिस निर्भयता और दृढ़ता से मुनिश्री ने किया, वह अलौकिक है । दुःखियों, पीड़ितों, पतितों और शोषितों के वे सहज सखा थे। उनके कष्टों से द्रवित होते थे। ज्ञानदान द्वारा उनके दुःखों को मिटाने का पुरुषार्थ करते थे।
पर-उपकार ही उनकी पूजा थी। जिसे वे सहज धर्म के रूप में जीवन भर करते रहे। 'तुलसीदासजी' ने कहा है
"पर उपकार वचन, मन, काया संत सहज स्वभाव खगराया। संत विपट सहिता गिर धरणी
पर हित हेत इननकी करनी॥' मुनिश्री के जीवन में संत का यह दिव्य चरित्र पग-पग पर भरा-पूरा नजर आता है। मुनिश्री जैन तत्त्वज्ञान के परम उपासक और साधक थे। प्रबल प्रवक्ता थे। उनकी ओजस्वी वाणी में मानव-मन की विकृतियों को नष्ट करने की अद्भुत कला थी । अहिंसा, मैत्री, एकता और प्रेम का सन्देश घर-घर फैला कर उन्होंने मानव-समाज और देश की अनुपम सेवा की । मनुष्यों में शुद्ध जीवन जीने की निष्ठा का स्नेह, वात्सल्य से अखंड दीपक जलाया । ऐसे निस्पृह तपस्वी साधु अध्यात्म-जगत् में बिरले ही होते हैं । मुनिश्री की प्रथम जन्म-शताब्दी भारत भर में मनाई जा रही है इस रूप में हम उस महान संत को अपनी पूजा अर्पित कर रहे हैं। यह हमारा परम सौभाग्य है । शताब्दी के पावन-पुनीत अवसर पर मैं उस धर्म-ज्योति को अपनी आंतरिक श्रद्धा अर्पित करता है। उन्हें शत-शत नमन करता हूँ।
समर्पित व्यक्तित्व
-श्री सुननमलजी भंडारी, इन्दौर जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी महाराज अपने युग के महान सन्त थे। जैन इतिहास में आपका धर्म-प्रचारक के रूप में अद्वितीय स्थान रहा है। चेहरे की प्रसन्न मुद्रा देखकर श्रोता का मंत्रमुग्ध हो जाना आपके चरित्र की मुख्य विशेषता रही है। यही कारण था कि तात्कालीन राणामहाराणा, राजा-महाराजा, एवं समाज के अन्य वर्ग के लोगों पर आपके हितकारी वचनों का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा। आपके सदुपदेश से बहुत से राजाओं और जागीरदारों ने अपने-अपने राज्यों में हिंसा-निषेध की स्थायी आज्ञाएं प्रसारित की। मुनिश्री का सम्पूर्ण जीवन प्राणिमात्र की रक्षा के पवित्र उद्देश्य के प्रति समर्पित था ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org