________________
: २०७: श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम
श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
हेजनजातिके दिव्यदूत!
-प्रो० श्रीचन्द्र जैन एम. ए., एल एल. बी. (उज्जैन) जय जय जय श्री जैन दिवाकर ।
आगम-ज्ञान-कोश, गुण सागर ॥ हे तपः पूत ! हे अमर संत ! आलोक-पुज ! मैत्री साधक । हे जन जागृति के दिव्य दूत ! थे सुरभित मंगलमय उदार । हे संयम साधक ! जग प्रहरी !
थे ज्ञान-कर्म-भक्ती-संगम । हे सत्य सनातन ! विभु-विभूत ! हे स्याद्वाद के कर्णधार ! तुम थे मानवता के प्रतीक । जय-जय हे ज्ञान-गंग धारा। तुम कल्पवृक्ष थे दीनों के । जय जय जगती के ध्रुवतारा । तुम शरणागत के प्रतिपालक। जय बोल रहा अम्बर सारा।. तुम ऋद्धि-सिद्धि थे हीनों के || शोषक पापी तुमसे हारा ।। तुम भ्रमितों के विश्वास बने । तुम सिद्ध रूप के समुपासक । हे महत् मनस्वी जीवन के । निर्ग्रन्थ ग्रन्थ के निर्माता। जग का उन्माद सदा हरते। साहित्य-मनीषी सद्वाग्मी। मुनिराज ! स्वयं सेवक बन के ।। उद्वेलित जग के प्रिय त्राता ।। जग-वल्लभ ! प्रबल प्रबोधक थे। तुम चन्दन थे बस इसीलिए। हे पारस पुरुष ! पतित पावन । तव पद-पंकज में तन जिनके। हे सत्यान्वेषी ! संत प्रवर ! वे भाग्यवान हो गए सतत । थे मनुहारों के सुख-सावन ।। ज्यों बोधिवृक्ष बनते तिनके ।। जय प्रसरणशील ! दया सागर । युग पुरुष ! युगान्तर किया सदा । अभिनन्दनीय ! नयनाभिराम ।
चारित्र सम्पदा के स्वामी। हे ज्ञान ज्योति ! हे मधुविहान ! चिरजीवित हो इतिहासों में । थे परिपोषक घनश्याम श्याम ।। तुम तेजोमय थे निष्कामी ।। तुम खरे रहे खारे न बने । हे पतितोद्धारक ! समभावी। ईमान बचाया जन-जन का। वरदानी थे लघु मनुजों के। तुम जिये सदा परहित में ही। तुमने अपनाए दलितों को। तुम में प्रतीक है कण-कण का ।। रक्षक बनकर इन तनुजों के ।। हे महामहिम ! आराध्य देव ।। आँधी तूफान डिगा न सके । थे वाणी-जादूगर अनूप । चट्टान चमेली बन महकी। थे वक्ता प्रखर प्रताप धनी।
हे गौरवमयी ! विरत विधना। जयदेव ! कर्मयोगी स्वरूप ।। सौ बार यहां श्यामा बहकी ।
मृदुल मेघ गर्जन सी वाणी । वाग्मी इन्द्रधनुष सी कविता ।। सत्यं शिवं सुन्दरं प्रतिमा । तेरी आलोकित गति सविता ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org