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१५ : जिहासिक असावेन
:१५१: ऐतिहासिक दस्तावेज
श्री दिवान स्मृत्ति-ग्रन्थ
श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
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७४ ॥
रामजी
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श्री चतुर्भुजजी
। मोहर छाप सही
ताल मेवाड़ ठाकुर साहिब की
जैन-सम्प्रदाय के प्रसिद्ध वक्ता पण्डित मुनि श्री चौथमलजी महाराज के मुखारविन्द का भाषण सुनने की इच्छा थी कि ईश्वर की कृपा से ता०२० मई सन् १९२७ ई० को पधारना हो गया। आपका उपदेश सुनकर चित्त बड़ा प्रसन्न हुआ इसलिए नीचे लिखी प्रतिज्ञा की जाती है।
(१) कार्तिक, वैशाख महीने में शिकार नहीं खेली जावेगी बाकी महीनों में से प्रत्येक महीनों में ८ रोज के सिवाय शिकार बन्द रहेगी । अर्थात् २२ दिन शिकार बन्द रहेगी।
(२) चैत्र शुक्ला १३ श्री महावीर स्वामी का व पौष कृष्णा १० श्री पार्श्वनाथजी का जन्म दिन होने से हमेशा के लिए अगता पलाया जावेगा।
(३) स्वामीजी श्री चौथमलजी महाराज के पधारने व विहार करने के दिन अगता पलाया जावेगा।
(४) प्रत्येक महीने की ग्यारस व अमावस के दिन शिकार जीमन में नहीं ली जावेगी।
(५) श्रावण मास के सोमवारों को हमेशा के लिए अगता पलाया जावेगा।
(६) श्राद्धपक्ष में हमेशा अगता पलाया जावेगा और शिकार भी नहीं खेली जायगी।
(७) स्वामीजी महाराज श्री चौथमलजी का ताल पधारना हआ इस खुशी में इस मर्तबा इस साल के लागत के आने वाले करीब ६०-७० सब बकरे अमरिये कराये जावेंगे।
(८) पहले भी महाराज श्री से त्याग किये हैं वे बदस्तूर पाले जायेंगे । (8) पजूसणों में कतई अगता पाला जावेगा।
लिहाजा हुक्म नम्बर १११ नकल इसकी स्वामीजी महाराज श्री चौथमलजी के सूचनार्थ भेंट की जावे और अगता पालन की खटिकान को हिदायत कराई जावे। अमरिये बकरे कराने की हस्व शरिस्ते काररवाई करने की हिदायत बीड़वान नाथू भाटी को की जावे । वि० सं० १९८३ का ज्येष्ठ कृष्णा ६ ता०२२ मई सन् १९२७ ई० रविवार ।
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