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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ।
एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन ! ६६ :
जोधपुर की जैन जनता जब इस कार्य में सफल हई तब उसके पत्र-व्यवहार से दरबार ने पूरे राज्य के कोने-कोने में भादवा सुदि चौथ और पंचमी को जीवदया पालने का हक्म जारी कर दिया। जैनियों को पर्युषण में दफ्तरों से सवेतन अवकाश भी दिया। इसके लिए जैन कान्फ्रेन्स की तरफ से धन्यवाद का तार भी दिया गया।
जोधपुर में ओसवालों के हजारों घर हैं। भारत में दो-तीन नगर ही ऐसे हैं जहाँ हजारों की संख्या में ओसवाल रहते हैं। उसमें भी ओसवालों में स्थानकवासी, मन्दिरमार्गी, तेरापंथी और वैष्णव आदि अनेक सम्प्रदाय हैं । फिर भी यह निर्णय लिया गया, यह स्पष्ट ही थी जैन दिवाकरजी महाराज के त्यागपूर्ण जीवन का प्रभाव है।
उम समय जोधपुर में अनेक संत और सति पां विराजमान थे। जोधपुर में उस समय । जगह व्याख्यान होते थे। जैन दिवाकर जी महाराज का व्याख्यान सभी लोग सुनना चाहते थे। परन्तु अपने सम्प्रदाय के गुरु महाराज का व्याख्यान सुनकर फिर वे लोग जैन दिवाकर जी महाराज का व्याख्यान सुनने आते थे। इससे गुरुदेव का व्याख्यान बहुत देर तक चलता था । ग्यारह-साढ़े ग्यारह बज जाते थे । उपस्थिति भी बहत होती थी।
'कन्या विक्रय निषेध' विषय पर व्याख्यान सुनकर कन्या विक्रय नहीं करना और करने वाले के यहाँ भोजन भी नहीं करना-ऐसा नियम बहुत से लोगों ने लिया।
___'विद्यार्थी कर्तव्य' पर जो व्याख्यान हुआ उसका और महिलाश्रम में व्याख्यान हुआ उसका बहुत प्रभाव पड़ा । महिलाश्रम के लिए ५००० रुपये के दान-वचन वहीं मिल गए।
भादवा बदी ६ को जोधपुर के तत्कालीन नरेश उम्मेदसिंह जी के दादा फतेहसिंहजी स्वयं महाराजश्री के दर्शनार्थ आये और श्रद्धापूर्वक चरणों में सिर झुकाया।
इस चातुर्मास में ५२ मोची परिवारों ने आजीवन मांस-मदिरा का त्याग कर दिया। जैनधर्म स्वीकार किया, नवकार मंत्र, सामायिक सीखने लगे। तेतीसवाँ चातुर्मास (सं० १९८५) : रतलाम
___ जोधपुर से विहार कर आपश्री सोजतिया गेट के बाहर ठहरे। ठीक सोजतिया गेट के सामने मुनिश्री के व्याख्यान होते थे। यहां माली लोगों ने काफी भक्ति की।
___ वहाँ से कई गाँवों में विहार करते हुए बडलू (भोपालगढ़) पधारे। वहाँ 'जैन रत्न पाठशाला' महाराज साहब के उपदेश से चाल हुई। जो आज 'जैन रत्न विद्यालय' के रूप में है एवं वहाँ एक बोडिंग हाउस भी चल रहा है।
नागौर में सार्वजनिक व्याख्यान हए; फिर बीकानेर पधारे। बीकानेर में करीब एक महीने रहे। रांगडी चौक में भी व्याख्यान हुआ।
स्थानकवासी मुनियों का सार्वजनिक प्रवचन यह पहला ही था। बीकानेर नरेश के भाई कर्नल श्री भेरूसिंह जी (बीकानेर) के साला श्री रामसिंहजी, बीकानेर के राजकुमार शार्दूलसिंहजी आदि ने भी लाभ लिया । बीकानेर से विहार कर कुचेरा होते हए मेड़ता पधारे।
__ मेड़ता में आपने 'पापों से मुक्त कैसे हों ?' विषय पर सार्वजनिक प्रवचन दिया । श्रोता समूह में मुस्लिम भाई भी थे । पैगम्बर साहब की बात कहने पर मुसलमानों की आँखों से आँसू बहने लगे। एक मुसलमान भाई तो बहुत जोर से रोने लगा। मुसलमानों पर जिनका ऐसा प्रभाव था तो अन्य जनों का क्या कहना | उन पर कितना प्रभाव था इसकी तो कल्पना ही की जा
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