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गुरुणां गुरु .डॉ० गुलाबचन्द्र जैन, दिल्ली
न्यायाचार्य डॉ० दरबारीलाल कोठिया मेरे लिए अनेक अर्थोंमें 'गुरुणां गुरु' है। शैक्षणिक जीवनमें उनके पास अध्ययन करनेका सौभाग्य तो नहीं मिला, लेकिन जैन दर्शन एवं न्यायके उनके द्वारा लिखित एवं सम्पादित ग्रन्थोंसे ही तब अध्ययनको गति मिली थी और आज भी उनका पारायण करता हूँ।
डॉ० कोठिया और उनकी पीढ़ी के विद्वानोंने जितना कुछ दिया है और आज भी दे रहे हैं-वह सब हमारी पीढ़ी के आधुनिक शैलीके विद्वानोंके लिए संबल है । जैन दर्शन एवं न्यायकी जिन गहराइयों तक वे पहुँचे हैं. वहाँका हमें आभास तो होता है, पर तल-स्पर्श नहीं कर सके, ऊपर-ही-ऊपर उतरा रहे हैं।
मेरी हादिक कामना है, श्रद्धेय कोठियाजी दीर्घायु हों। वे इस नयी पीढीको इतना सक्षम बना दें कि वह समाज, राष्ट्र और विश्वके नये दर्पणमें जैन-दर्शनके अब तकके अवदानको नये रूपमें प्रतिबिम्बित कर सके। विनम्रता और सरलताके अग्रणी .श्री चंदनमल 'चाँद', बम्बई
आदरणीय कोठियाजीसे बम्बई, श्रवणवेलगोल एवं देशके अन्य बड़े शहरों एवं कार्यक्रमोंमें कई बार मिलना हुआ, उनके लेख एवं भाषण भी सुने और मुझे लगा कि डॉ० कोठिया उच्चकोटिके विद्वान् है, किन्त विनम्रता और सरलतामें भी वे अग्रणी हैं। निश्छल, सादगीपूर्ण व्यक्तित्ववाले कोठियाजी भारत जैन महामंडलकी गतिविधियोंसे एवं 'जैन जगत' मासिकसे वर्षोंसे जुड़े हए हैं।।
डॉ० कोठियाजी इसी प्रकार सेवामय स्वास्थ्ययुक्त अपने जीवनका शतक पूर्ण करें और धर्म तथा साहित्यकी सेवामें सतत संलग्न रहें, यही हमारी शुभकामना है । आयोजकोंको इस शुभ कार्यके लिए बधाई देते हुए डॉ० कोठियाजीके प्रति अपनी आदरांजलि अर्पित करता हूँ। यशस्करी विद्याके अमर उपासक डॉ० कमलेश कुमार जैन, जैन विश्वभारती, लाडनूं
वर्तमान युगमें जैन न्यायके अध्ययनका श्रीगणेश न्यायाचार्य पूज्य पं० गणेशप्रसादजी वर्णीने किया था। पूज्य वर्णीजी महाराजने काशीमें रहकर न्यायशास्त्रीय ग्रन्थोंका अध्ययन जिन विकट परिस्थितियोंमें किया था, वह अपने आपमें एक इतिहास है, जिससे अनेक विद्वान् परिचित हैं। इस परम्पराको अक्षुण्ण बनाये रखनेके लिये स्याद्वाद महाविद्यालय (काशी) के पूर्व न्यायाध्यापक डॉ. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य यावज्जीवन समर्पित भावसे लगे रहे।
इस क्रममें जैन न्यायशास्त्रीय ग्रन्थोंका यद्यपि सम्पादन | प्रकाशन हो रहा था, किन्तु पण्डितमानी विद्वानों के लिये दुर्जेय न्यायशास्त्रीय संस्कृतमें निबद्ध ग्रन्थोंको हिन्दीमें अनूदित एवं संपादित करनेका प्रथम प्रयास डॉ० कोठियाजीने किया है। उन्होंने न्यायशास्त्रीय ग्रन्थोंके सम्पादन एवं हिन्दी अनुवादका कार्य जिस सरल एवं सुबोध शैलीमें किया है, वह उनके न्यायशास्त्रीय वैदुष्यका अनुपम निदर्शन है । डॉ० के द्वारा सम्पादित अनूदित ग्रन्थोंके प्रारम्भमें लिखी गई उनकी प्रस्तावनायें और स्वतंत्र रूपसे लिखे गये शताधिक शोध-निबन्ध भी उनके साहित्यिक योगदानके अभिनन्दनीय दस्तावेज है। यशस्करी विद्याके अमर उपासक माननीय डॉ० कोठियाजीके दीर्घायुष्यकी मंगल-कामना करते हुए हम उनके प्रति अपने श्रद्धा-सुमन समर्पित करते हैं।
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