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जीवन-संचालनकी सीख है। कलम चलाने की सीख है। म से याद है कि हम लोग अपने छोटे-छोटे अधकचरे लेख लिखकर उन्हें दिखाने ले जाते थे। वे अपना अध्ययन छोड़कर तुरन्त हमारे लेख संशोधित करते । उन्हें अपनी ज्ञान-गरिमासे सजाते-सँभारते और आगे वैसी भूलें न करनेकी सीख देते । बनारसकी गंगाकी महिमा हमने देखी-सुनी थी, किन्तु हमारे लिए तो पं० कोठियाजी तब जैनदर्शनकी ज्ञानगंगा थे और आज जैनविद्याकी ज्ञाननिधि है । जैन न्याके विश्वकोश।
___डॉ० पं० कोठियाजीमें प्राचीन परम्पराका पाण्डित्य और आधुनिक अनुसंधानशैली इन दोनोंका समन्वय हुआ है । १-२ वर्ष पूर्व बनारसमें उनके निवास स्थानपर जब उनके दर्शन किये तथा उन्हें अपने विभागकी प्रगतिसे अवगत कराया तो वे गद्गद हो उठे । तुरन्त ही उन्होंने अधुनातन प्रकाशित अपनी कृति हमारे विभागको भेंट को और कहा-'सुमन, तुम विश्वविद्यालयमें जैन विद्याके शिक्षण और अनुसन्धानकी ज्योतिको बुझने न देना । जैनविद्याके संरक्षण और सम्बर्द्धनकी बात पहले सोचना, व्यक्तिगत पदोन्नति और लाभकी बात बाद। कोई भी छात्र धनाभावके कारण विद्यार्जनसे विमुख न हो, इसका निरन्तर ध्यान रखना । कोई कठिनाई हो तो मुझे लिखना।' पंडितजीके ये उदगार ज्ञान के प्रति समर्पित उनके व्यक्तित्वको जितना उजागर करते हैं, उतना ही आजकी पीढ़ीके जैन विद्वानोंके लिए मार्ग-दर्शन भी करते हैं । पूज्य डॉ० कोठियाजीके व्यक्तित्वमें ज्ञानसरिता और वात्सल्यसरिता दोनोंका सुन्दर संगम हुआ है। ऐसे ज्ञाननिधि गुरुदेव और वात्सल्य-कोश संरक्षक शतायु हों। उनके अतिशय गुणोंको अनन्त प्रणाम । पंडितजीके व्यक्तित्वको साज-सम्हार करने वाली मौन-साधिका गुरुपत्नी माताजीको भी सादर अभिवादन । प्रेरक व्यक्तित्व •प्रो० प्रवीणचन्द्र जैन, जयपुर
डॉ० दरबारीलाल कोठिया देशके उन गिने-चने विद्वानोंमेंसे एक हैं, जिनका जैन दर्शन और जैन न्यायपर पूर्ण अधिकार है। मेरा परिचय आपसे वाराणसीमें एक विषयके अनुसंधानके प्रसंगमें हुआ । तबसे अब तक आपका मुझपर स्नेह एवं अनुराग है । मैं आपके मानवीय गुणोंसे अन्यन्त प्रभावित है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसीमें जैन-बौद्ध दर्शनके प्रवाचक रहते हुए आपने जैन दर्शन और साहित्यके अध्ययन और अनुसंधानको नई दिशा दी, एक ऐसा मोड़ दिया, जो आजके तर्क एवं युक्ति प्रधान मानसको सरलता और सहजतासे स्वीकृत हुआ।
अभिनन्दन-ग्रन्थकी योजनाकी एक विशेषता यह है कि इसका मेरी दृष्टि 'मेरी सृष्टि' वाला अंश डॉ० कोठियाको पाठकोंके और निकट ले जायगा। वे उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व दोनोंसे अधिकाधिक परिचित हो सकेंगे । इस अंशसे अभिनन्दन-ग्रन्थ एक सन्दर्भ-ग्रन्थका रूप भी ले लेगा।
इस शुभ अवसरपर डॉ० दरबारीलाल कोठियाके प्रति विनयपूर्वक अपने भाव-कुसुम अर्पित करता हूँ। उनके लिए मंगल-कामना करता हूँ तथा उनके दीर्घ जीवनके लिए प्रार्थना करता हूँ। मैं चाहता हूँ कि हमलोगोंके बीच रहते हुए वे जैन साहित्यके उन आयामोंपर प्रकाश डालते जायँ, जो अभी अविदित या अर्धविदित हैं । यह प्रकाश आनेवाली विकासोन्मुख पीढ़ी के लिए प्रेरक एवं उद्बोधक हो । देर आयद दुरुस्त आयद .५० पद्मचन्द्र जैन शास्त्री, देहली
___ मान्य कोठियाजीका अभिनन्दन विद्वत्समाजका अभिनन्दन है, जो समाजको देरसे सूझा। खैर, 'देर आयद दुरुस्त आयद' ।मैं तो कोठियाजीको परिचयमें आनेके बादसे निरन्तर अभिनन्दन देता रहा है। शुभ कामनाओं सहित ।
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