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प्रभाचन्द्र और न्यायकुमुदचन्द्रके कर्ता प्रभाचन्द्र भिन्न हैं-दोनोंको अभिन्न मानना तब तक ठीक नहीं है जब तक उनकी अभिन्नताके समर्थक प्रमाण सामने न आजायें। .
मुख्तारसाहबका यह मत विचारणीय है । हमारा विचार है कि प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता एक ही प्रभाचन्द्र है और वे ११ वीं शताब्दीमें राजा भोज और उसके उत्तराधिकारी जयसिंहके राज्यकालमें हुए हैं। वादिराज सूरि भी ११वीं शतीके विद्वान् हैं । यह पूरी संभावना है कि वे प्रभाचन्द्रकी कृतियोंसे सुपरिचित हो चुके होंगे। वादिराजने न्यायविनिश्चयविवरण, पार्श्वनाथचरित (ई० १०२५) के बाद ही लिखा है तब तक न्यायकुमुद (लघीयस्त्रयालंकार) के कर्ता प्रभाचन्द्र वृद्ध ग्रन्थकारके रूपमें प्रसिद्ध हो चुके हों तो कोई आश्चर्य नहीं और तब वादिराजने 'गुणचन्द्र मुनि' पदके द्वारा उन्हींका उल्लेख किया हो । फिर भी यह सब अनुसन्धेय है ।
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