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समाधिमरणोत्साहदीपक : एक समीक्षा
डॉ० (सौ०) कुसुम पटोरिया, नागपुर जैन साहित्यमें समाधिमरणपर अनेक ग्रन्थ रचे गये हैं, उन्हींमें 'समाधिमरणोत्साहदीपक' भी एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्य है। इसके रचयिता १५वीं शताब्दीके विद्वान आचार्य सकलकीति हैं । समाधिमरणके प्रति मुमूर्षुको उत्साहित करना इसका लक्ष्य है।
इसका सम्पादन सम्पादनकलामें निष्णात डॉ० दरबारीलालजी कोठियाने किया है। इसकी एक प्रति स्व० पण्डित जुगलकिशोरजी मुख्तारको बड़ा-धड़ा मन्दिर अजमेरसे प्राप्त हुई थी। उसीके आधारपर इस ग्रन्थका सन्दर सम्पादन हुआ है। इसके पूर्व इस ग्रन्थका नामोल्लेख भी प्राप्त नहीं था।
ग्रन्थके आरम्भमें पं० परमानन्दजी शास्त्री द्वारा लिखित ग्रन्थकारका परिचय है, जिसे उन्होंने अप्रकाशित सकलकीतिरास, ऐतिहासिक पत्र और पट्रावलियों आदिके आधारसे प्रस्तुत किया है। मूलग्रन्थमें कोई प्रशस्ति नहीं है। रचयिताने 'सुगणिसकलकोा ' उल्लेख द्वारा अपने नाममात्रकी सूचना की है। इस परिचय द्वारा उनके विषयमें पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है। इनके द्वारा रचित ३७ ग्रन्थ हैं, जिनकी सूची शास्त्रीजीने इसमें दी है। सकलकीतिने अपने जन्मसे गुजरातको सुशोभित किया था। इनकी दीक्षा सम्भवतः भट्टारकीय पद्धतिसे हुई थी, बादमें ये दिगम्बर साधु हो गये थे। ये भ० पद्मनन्दिके शिष्य थे तथा इनके शिष्य ब्रह्मजिनदास थे, जिन्होंने 'सकलकीतिरास' रचा है और उसके द्वारा उनका जीवन परिचय दिया है।
डॉ० कोठिया द्वारा सम्पादित अन्य ग्रन्थोंकी तरह इस ग्रन्थकी भी विशेषता उसकी शोधपूर्ण प्रस्तावना है। इस प्रस्तावनामें उन्होंने सल्लेखनाका अर्थ, उसकी आवश्यकता, महत्त्व, काल, प्रयोजन, विधि, फल, सल्लेखनाधारकके सहायकों तथा उनके कर्त्तव्य, सल्लेखनाके भेदों तथा उसकी श्रेष्ठता आदिपर विस्तृत एवं सूक्ष्म विचार किया है। साथ ही जैनेतर दर्शनोंमें इस सल्लेखनाके उपलब्ध न होनेका भी ऊहापोह पूर्वक विमर्श किया है । डॉ० कोठियाकी यह प्रस्तावना वस्तुतः एक छोटा-सा शोधग्रन्थ है ।
प्रस्तावनामें डा० कोठियाने भगवती आराधना, सर्वार्थसिद्धि, रत्नकरण्डश्रावकाचार, गोम्मटसार, सागारधर्मामत, मत्युमहोत्सव आदि ग्रन्थोंका आलोडन कर उनके सल्लेखना सम्बन्धी उद्धरणोंको देकर उसे पूर्ण और उपादेय बनाया है। इससे कितनी ही नवीन ज्ञातव्य सामग्री पाठकोंको मिलेगी। सल्लेखना जैन धर्मकी एक विशिष्ट देन है । इसका अन्य दर्शनों में कोई कथन या उल्लेख नहीं है।
ग्रन्थका हिन्दी अनुवाद पं० हीरालालजी सिद्धान्तशास्त्रीने किया है, जो मूलके अर्थको स्पष्ट करने में सक्षम है । आवश्यक स्थलों पर विशेषार्थों द्वारा भावों और कथास केतोंका भी स्पष्टीकरण किया है ।
ग्रन्थके अन्त में डॉक्टर कोठियाने तोन परिशिष्टोंकी भी योजना की है। पहला पद्यानुक्रमणिका, दूसरा पारिभाषिक शब्दसूची और तीसरा उपयोगी समाधिमरणपाठसंग्रह है। तीसरेमें (क) अज्ञातकर्तृक संस्कृत मृत्युमहोत्सव तथा उसकी पं० सदासुखजीको हिन्दी वचनिका, (ख) पण्डित द्यानतरायजीकृत समाधिमरणभाषा (ग) पं० सूरचन्द्रजी कृत समाधिमरणभाषा और (घ) समाधिमरणभावना इन चारोंका संग्रह है । इनसे समाधिमरण करने और करामेंमें अच्छी एवं पर्याप्त सहायता प्राप्त होगी।
यह प्रसन्नताकी बात है कि डॉ० कोठियाने एक साधारण ग्रन्थको अपने सुयोग्य सम्पादन द्वारा जनसाधारणके अतिरिक्त विद्वानोंके लिये भी अध्येतव्य बना दिया है और इसे अपनी अन्य सम्पादित कृतियोंकी शृंखलामें जोड़ दिया है, निश्चय ही उनकी यह साहित्य-साधना स्तुत्य है।
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