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प्रमाण-मीमांसा, उसमें भी अनुमान-मीमांसाकी प्रमुखता इस दर्शनमें होती गई। आलोच्य कृतिके शीर्षकमें प्रयुक्त 'तर्कशास्त्र' से 'प्रमाण-मीमांसा' विशेषकर 'अनुमानमीसा' अभिप्रेत है।
भारतीय दर्शन-चिन्तनमें तर्क
भारतीय तर्कशास्त्रकी परम्परा अतिप्रचीन है । उपनिषद् काल तक, अध्यात्म-विवेचनके क्षेत्रमें उपयोगिताको दृष्टिसे तर्कशास्त्र एवं अनुमान-प्रमाणको मान्यता प्राप्त हो चुकी थी। वाल्मीकि रामायण, महाभारत, प्राचीन बौद्ध पाली ग्रन्थों आदिमें तर्कशास्त्र का विविध नामोंसे उल्लेख दृष्टिगोचर होता है । वाकोवाक्य, हेतु-विद्या, न्याय, अन्वीक्षा, आन्वीक्षिकी, अनुमानशास्त्र आदि संज्ञाओंके रूपमें भारतीय चिन्तन-भूमिमें तर्कशास्त्र फलता-फूलता रहा है।
__ भारतीय दर्शन-क्षेत्रमें 'तर्क' किसी न किसी रूपमें प्रतिष्ठित रहा है । सर्वमान्य नास्तिक दशन यद्यपि सामान्यतः प्रत्यक्षकप्रमाणवादी माना जाता है, तथापि उसकी यह विशेषता रही है कि वह वैदिक मान्यताओंपर, सामान्य लौकिकजन-बोध्य युक्तियों के रूपमें तर्क-अस्त्र फेंक कर तीखी चोट करता है। भौतिक देहको आत्मा सिद्ध करने हेतु उसके प्रयास में तर्क व अनुमानका लौकिक रूप ही दृष्टिगोचर होता है। यही कारण है कि ऐसे लोगोंको कुतर्की घोषित कर आस्तिक-परम्पराके साहित्यमें हेतुदुष्ट, वेदनिन्दक, बाल, दुर्बुध आदि विशेषणोंसे निन्दनीय बताया गया है । जहाँ तक आस्तिक दर्शनोंका प्रश्न है, उन सबमें, शब्द या आगम (वेद या श्रुति आदि) को प्रमाणता स्वीकारते हए भी, प्रत्यक्ष-अगम्य (इन्द्रियातीत) आत्मा, परलोक, पुनर्जन्म आदि मौलिक (आधारभूत) पदार्थोंकी स्थापना प्रमुखतः तर्क या अनुमान द्वारा की जाती रही है । जो आज आस्तिक दर्शन (पूर्वमीमांसा, उत्तरमीमांसा, सांख्ययोग , न्याय-वैशेषिक) माने जाते हैं, वे यद्यपि वेद-प्रमाणताको स्वीकारते हए भी". तर्क-प्रमाणताकी ओर अधिक झकसे हुए प्रतीत १. अपरे त्वनुमानं तर्क इत्याहुः, हेतुस्तर्को न्यायोऽन्वीक्षा इत्यनुमानमाख्यायते इति (उद्योतकर, ___ न्यायवार्तिक), १।१।४०) । २. साधक-बाधकप्रमाणोपन्यासो युक्तिः (तर्कप्रकाश, १)। ३. किमीहः किंकायः स खलु किमुपायस्त्रिभुवनम्, किमाधारं धाता सृजति किमुपादानमिति च । अतक्र्यैश्वर्य
त्वय्यनवसरदुःस्थो हतधियः, कुतर्कोऽयं कांश्चिन्मुखरयति मोहाय जगतः (शिवमहिम्नस्तोत्र-५) । बुद्धिमान्वीक्षिकी प्राप्य निरथं प्रवदन्ति ते । (वा० रामायण, २११०२३९) । अहमासं पण्डितको हैतुको वेदनिन्दकः । आन्वीक्षिकी तर्कविद्यामनुरक्तो निरथिकाम् । हेतुवादान् प्रवदिता वक्ता संसत्सु हेतुमत् ।। (महाभारत, शान्ति पर्व, १८०।४७-४८) ।
स्वहेतुभिर्न हन्येत कस्य वाक्यं कदाचन (शुक्रनीति, ३६४)। तर्कोऽप्रतिष्ठः (म० भा०, वनपर्व, ३१३।११७) । तर्कस्याप्रतिष्ठानात् (ब्रह्मसूत्र-२।१।१)। न तर्कशास्त्रदग्धाय""रहस्यधर्म वक्तव्यम् (म० भा० शान्तिपर्व-२४६।१८-१९)। योऽवमन्येत ते मूले हेतुशास्त्राश्रयाद् द्विजः । स
साधुभिर्बहिष्कार्यो नास्तिको वेद-निन्दकः ।। (मनु-२।११) ५. द्रष्टव्य-न्यायसूत्र ३।१।३, वैशेषिक सूत्र-२।१।१७-१९,-१।१।३, १०।२।१०, ३।२।८, ३।२।२।, ४।२।
१२, ५।२।१०, प्रमाणं वेदः (प्रशस्तपादभाष्य, अनुमानशब्दान्तर्भाव प्रकरण), सांख्यसूत्र-१।५३,१।८३, १।५४, २।२१, ३८०, ५।१२, योग-सूत्र-११७, ११२६, पूर्वमीमांसा (जैमिनिसूत्र)-१।३।३, वेदान्त (ब्रह्मसूत्र) १।१।३।३, २।३।१।१, २।३।११।१७, २।३। १६:४१, २।४।१।३, ३।२।८।३९, १।१।५।११, २।१।९।२०, श्रुतिप्रमाणो धर्मः (मनु-२।१ पर कुल्लूक)।
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