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जैन न्यायक अद्वितीय प्रकाण्ड पण्डित
पं० रतनलाल कटारिया, केकड़ी
समग्र विषयोंमें न्यायका विषय बहत महत्त्वपूर्ण है, चाहे वह लौकिक हो, चाहे धार्मिक वह एक प्रकारसे सब विषयोंकी व्याकरण है । धार्मिक न्यायोंमें भी जैन न्यायका स्थान सर्वोपरि है। पंडितप्रवर श्री दरबारीलालजी कोठिया खासतौरसे इसीके विशेषज्ञ (Specialist) है। उन्होंने अपना जीवन इसीके तुलनात्मक तलस्पर्शी अध्ययन-मनन-चिन्तनमें लगाया है । इस विषयको विविध दृष्टियोंसे आत्मसात् कर उन्होंने अनेक प्राचीन ग्रन्थोंका सुन्दर, सुबोध, सम्पादन, अनुवादादि किया है एवं मौलिक ग्रन्थोंका भी निर्माण किया है, अनेक शिष्योंको इस विषयमें निष्णात किया है।
इस समय इस विषयके और कोई दूसरे जैन विद्वान् इतने विशेषज्ञ नहीं हैं जितने आप हैं। इस तरह आप इस विषयके अद्वितीय प्रकाण्ड पण्डित हैं ।
वीर-सेवा-मंदिरमें वर्षों तक समीक्षा-सम्राट पाण्डित्यविभति आचार्य श्री जुगलकिशोरजी मुख्तारके साथ रहकर आपने एतद्-विषयक अनेक शोध-खोज पूर्ण लेख भी लिखे हैं । न्यायके सिवा जैन-सिद्धान्त, दर्शन. इतिहास. काव्यादिके भी आप विचक्षण विद्वान हैं। दि० आचार्यों की प्राचीनता. विशद्धता. महनीयताको भी अकाट्य रीतिसे आपने प्रमाणित किया है । इस तरह जैन साहित्यकी जो आपने महान् गौरवपूर्ण सेवा की है वह वास्तवमें अभिनन्दनीय है ।
आप शतायुः होकर इसी प्रकार श्रुतको श्रीवृद्धि करते रहें, यही शुभ कामना है ।
मेरी पहली मुलाकात श्री महेन्द्र कुमार 'मानव', छतरपुर
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कहावत है कि “विद्या ददाति विनयम्" । पं० दरबारीलाल कोठियाको उनके घरमें पहली बार देखकर ऐसा लगा था कि यह व्यक्ति तो एक साधारण गृहस्थ है । उनको देखकर यह कल्पना ही नहीं की जा सकती कि वे जैन न्यायके एक प्रकांड विद्वान, महापंडित, न्यायालंकार, न्यायरत्नाकर, न्यायवाचस्पति, न्यायाचार्य, शास्त्राचार्य, एम० ए०, पी-एच० डी० होंगे। उनमें ऊपरकी कहावत चरितार्थ होती है ।
पुस्तक-मुद्रणके सिलसिलेमें डॉ० नरेन्द्र विद्यार्थी और उनकी पत्नी डॉ० रमा जैनके साथ अक्टूबर १९७९में मेरा वाराणसी जाना हुआ था । दम्पतिके साथ मैं भी पंडितजीके दर्शनार्थ उनके निवासपर पहुंचा। काशीमें बरसों रहने के बाद और संस्कृतके पंडितोंकी संगति करके भी पंडितजी आज पूरे बुन्देलखण्डी हैं ।
पंडितजी घरमें धोती और बंडी पहने थे। बाहर निकलते वक्त वे धोती, कुरता और गाँधीटोपी पहन लेते हैं। उनका विनम्र, सरल, शालीन व्यक्तित्व देखकर मैं चकित रह गया था ।
पंडितजीने भोजन करनेका आग्रह किया। जब हम लोगोंने मना किया, तो तत्काल दूसरे दिन के लिये निमन्त्रण दे दिया। दूसरे दिन प्रातःकाल हम लोग पंडितजीके यहाँ भोजन करने गये । पंडितजीकी पत्नी भी बड़ी सीधी-सादी और गृहस्थिन महिला हैं। हम लोगोंने उनके हाथका बना शुद्ध सात्विक भोजन किया ।
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