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डा० दरबारीलाल कोठियाकी इन सारी सफलताओंके श्रेयमें, यदि अधिक नहीं तो बराबरीका एक भागीदार भी है। वह हैं उनकी गुण-धर्म-परायणा धर्मपत्नी श्रीमती चमेली देवी । अत्यन्त सौम्य और मृदुस्वभावी चमेली देवीने कोठियाजीको न केवल "गृह जीवन नाना जंजाला"के चिन्ताओंसे हमेशा मुक्त रखा, वरन विषम और अप्रिय प्रसंगोंपर उन्हें सत्परामर्श और प्रेरणा देकर परिस्थितियोंसे जझने में उत्साहित भी किया। डा० कोठियाको सम्मानित करके आज हम सहज ही उनकी उस अजस्र शक्तिको भी सम्मानित कर
आज अपने जीवनके बहत्तर वर्ष सेवा और संघर्ष में खपाकर कोठियाजी एक तरहसे अपने आपको कृतकृत्य अनुभव कर सकते हैं। आजको सुविधाभोगी और उपार्जनमूलक पद्धतिके सहारे एक सम्पूर्ण जीवनमें जितना कुछ करके लोग अपनी महानताओंका ढिंढोरा पीटने लगते हैं, उससे कई गुना सेवाकार्य कोठियाजी घोर असुविधाओंके बीच अपनी निस्पृहताके बलपर कर चुके हैं। इस परिप्रेक्ष्यमें डा० दरबारीलाल कोठियाका अभिनन्दन निष्ठा और आस्थाका अभिनन्दन है । उस अभिनन्दनमालामें एक पाँखुरो अपनी ओर से मिलानेका अवसर मेरे लिए सौभाग्यसे कम नहीं है।
वे जैन जगत् के गौरव हैं पं० कुंजीलाल जैन, गिरीडीह
श्री न्यायाचार्य डॉ० दरबारी लालजी कोठियाके सम्मानमें अभिनन्दन-ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है. इस समाचारने मुझे अत्यधिक प्रसन्नता प्रदान की है । डाक्टर कोठिया जैन जगतके गौरव हैं। जैन भारतीके विकास एवं प्रकाश में उन्होंने जो योगदान दिया है वह ऐतिहासिक है । जैन न्यायके निश्चय ही वे अप्रतिम विद्वान हैं। उनके द्वारा लिखित एवं सम्पादित ग्रन्थ उनकी प्रामाणिक एवं प्रौढ़ शास्त्रीय विद्वत्ताको युग-युग तक प्रसारित करते रहेंगे । बीसवीं सदीके जैन विद्वानोंकी मणिमालामें वे तेजस्वी रत्न हैं। विद्वत्ताके साथ-साथ उनकी मनस्विता, सहृदयता, वात्सल्य एवं विद्वानोंके साथ आत्मीय भाव सभी कुछ इलाध्य है। जैन विद्वानोंके लिए विद्वत परिषदके माध्यम से उन्होंने बहुत कुछ ऐसा किया है जो केवल उनसे ही साध्य था । अपने मित्रों के प्रकाशमें आनेसे उन्हें जो आन्तरिक आनन्द आता है वह आजके ईर्ष्यालु युगमें विस्मयकारी है । मैं जब भी उनसे मिला हूँ मुझे उनसे सहोदर ज्येष्ठ बन्धुका निश्छल प्यार मिला है। अपने क्षीण स्वाथ्यमें भी जिनवाणीके प्रसार-प्रचारमें उनका जो अदम्य उत्साह है वह निश्चय ही उनके भावी श्रुतकेवलित्वका परिचायक है।
मैं अत्यन्त भक्तिभावसे श्री वीरप्रभुके चरणोंमें प्रार्थना करता हूँ कि डॉ० कोठिया शताधिक वर्षों तक स्वस्थ एवं प्रसन्न रहते हुए जैन वाङ्मयके भण्डारको भरते रहें एवं अपनी मृदु वाणीसे समाजकी आगमश्रद्धाको दृढ़ बनाये रखें, जिससे रत्नत्रयकी पवित्र धारा अविच्छिन्न बहती रहे।
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