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दरबारीलालजीके जीवनमें अनेक उतार-चढ़ाव आये हैं । हम बता चुके हैं कि अल्पायुमें ही उन्हें अपने पिता और मातासे विसोहकी वेदना सहन करनी पड़ी थी, उनके अपने तीन सन्ताने हयीं, लेकिन एक का भी सुख उनके भाग्य में नहीं बदा था, बचपनमें ही तीनोंका निधन हो गया।
लेकिन दरबारीलालजीने इस दारुण दुःखसे अपने जीवनको हताश अथवा कुण्ठित नहीं होने दिया और उसमें उसे शक्ति उत्पन्न की। उनकी जगह और कोई होता तो उसके अन्तरका रस सूख जाता; लेकिन
नहीं होने दिया। धर्म, समाज और साहित्यकी सेवा में अपने को लीन कर दिया । आज उनके रचे या सम्पादित अनेक ग्रन्थ हैं, जो उनकी प्रतिभाको उजागर करते हैं। दर्शन में उनकी विशेष गति है और उस क्षेत्रमें उन्होंने विशेष योगदान दिया है।।
जिन दिनों वह दिल्ली में समन्तभद्र संस्कृत महाविद्यालयमें प्राचार्यके पदपर कार्य करते थे, उनसे प्रायः भेंट हो ही जाती थी, उससे पहले और बादमें भी सामाजिक तथा धार्मिक आयोजनोंमें वह मिलते रहते थे। मुझे ऐसा एक भी अवसर याद नहीं आता, जब मैंने उन्हें चिन्तित अथवा हैरान देखा हो। जीवनके प्रति उनका दष्टिकोण सदा आशावादी रहा है और अपनी वाणी तथा लेखनीसे वह समाजको समुन्नत करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहे हैं। मझे स्म-ण है कि कुछ वर्ष पहले दिल्लीके लाल मन्दिरमें जब मैंने 'वीरनिर्वाण भारती'के पुरस्कारसे उन्हें अलंकृत किया था, तो उन्होंने जैन विद्वानोंको समाजकी बहविध सेवा करनेके लिए प्रेरित किया था।
जैन धर्म, जैन दर्शन ओर जैन संस्कृति के प्रति उनकी गहन आस्था है। वह मानते हैं कि विश्वशान्तिको स्थापनामें जैन-धर्मकी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है, लेकिन यह तभी संभव है, जबकि जैन समाज स्वयं उस दिशामें सक्रिय हो।
मुझे हर्ष है कि दरबारीलालजीको एक अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया जा रहा है । वह इसके सर्वथा योग्य हैं। उनकी सेवाओंके उपलक्ष्य में उनको यह सम्मान मिलना ही चाहिए था। मैं उनका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ और कामना करता हूँ कि वह स्वस्थ रहें, दीर्घायु हों और समाज, साहित्य तथा धर्मकी अनेक वर्षों तक सेवा करते रहें ।
समन्वयशील दार्शनिक विद्वान
श्री अगरचन्द नाहटा, बीकानेर
डॉ० दरबारीलालजी कोठिया जैन दर्शनके जाने-माने विद्वान हैं। उन्होंने दार्शनिक ग्रन्थोंका गहरा अध्ययन करके कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं । और अपने उन ग्रन्थों, लेखों एवं अन्य सेवाकार्योंसे अच्छी ख्याति अजित की है। काफी वर्षोंसे वे बनारसमें रहकर अनेकों लेखकों और शोधाथियोंको मार्ग-दर्शन करते रहते हैं। निवत जीवनमें भी उनका ग्रन्थ, लेख-लेखन और अन्य जिज्ञासुओंके ज्ञानवद्ध नमें सहायक बननेका सतकार्य करते रहते है । उनको नानाविध सेवाओंको ध्यानमें रखते हए उनके अभिनन्दन करनेका जो निर्णय किया गया है वह बहुत ही समीचीन और प्रशंस्य है।
कोठियाजोसे मेरा परिचय काफी पुराना है । वीर-सेवा-मन्दिर दिल्ली में स्व० जुगलकिशोरजी मुख्तार अनेकान्तका सम्पादन करते थे । उसी प्रसंगमें मुख्तार साहबसे मैं जब-जब वहाँ रहा उनसे मिलने जाता रहा ।
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