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इस समय हमारे सामने दो प्रशस्ति-लेख उपस्थित हैं। उनमेंसे एक जैन शिलालेखसंग्रह भाग १ ले० संख्या ४० पृ० २५ में मुद्रित हुआ है। इसकी चर्चा स्व० श्री पं० परमानन्दजीने 'जैन धर्म का प्राचीन इतिहास' द्वि० भा०, १० २३९ में की है। दूसरा लेख बहोरीबन्द क्षेत्रपर अवस्थित तीर्थंकर शान्तिनाथ मूर्तिके पादपीठपर अंकित है । दोनों लेखोंका क्रमसे मूल पाठ इस प्रकार है(१) जैन शिलालेख संग्रहमें अंकित पाठ
इत्याद्यमुनीन्द्रसन्ततिविधौ श्रीमूलसंध्ये ततो। जाते नन्दिगणप्रभेदविलसद्देशीगणे विश्रुते ।। गोल्लाचार्य इति प्रसिद्ध मुनिपोऽभूद् गोल्लदेशाधिपः ।
पूर्वं केन च हेतुना भवभिया दीक्षां गृहीतस्सुधीः ।। (२) बहोरीबन्दमें भ० शान्तिनाथके पादपीठ पर अंकित पाठ
'स्वस्ति श्री १००० फाल्गन वदी २ श्रीमद् गयकर्णदेवविजयराज्ये राष्ट्रकुटकुलोदभवमहासामन्ताधिपतिश्रीगदगोल्हणदेवस्य प्रवर्धमानस्य श्रीमदगोल्लापूर्वाम्नाये वेल्लप्रभाढिकायामरुक ताम्नाये तर्कताकिकचूडामणिः श्रीमद्माधवनन्दिनाऽनुगृहीतः साधुः श्री सर्वधरः तस्य पुत्रः धर्म
दानाध्ययने रतः महाभोजः । तेनेदं कारितं रम्यं शान्तिनाथस्य मन्दिरम् ।' आदि । ये दो लेख हैं । इनको दृष्टिपथमें लेनेपर कई बातोंमें समानता दिखाई देती है । यथा
(१) यह तो प्रथम लेखमें ही स्वीकार कर लिया गया है कि भारतवर्ष में कोई प्रदेश ऐसा अवश्य रहा है जिसे पहले कभी गोल्लदेश कहा जाता रहा है।
दूसरे लेखमें यद्यपि गोल्लदेशका नाम तो अंकित नहीं है, पर लगता है जिस प्रदेशमें गोलापूर्व, गोलाराड् और गोलशृंगार जाति पूर्वकालमें बसती रही है वह प्रदेश ही गोल्लदेश होना चाहिये, ‘गोलाराड्' में 'राड्' शब्दसे इस तथ्यको पुष्टि होती है।
(२) प्रथम लेखमें गोल्लाचार्यको गहस्थ अवस्थामें गोल्लदेशका अधिपति कहा गया है। क्या ये गोल्लाचार्य राष्ट्रकूट कुलोद्भव गोल्हणदेव ही तो नहीं है ? सम्भवतः या तो इनका जन्म गोल्लदेशमें हुआ है, इसलिये ये 'गोल्हणदेव' नामसे प्रख्यात हए। या फिर गोल्लदेशके राजा होनेके कारण ये 'गोल्हणदेव' कहलाये। यह नामसाम्य कई दृष्टियोंसे विचारणीय है ।
(३) उक्त दोनों लेखोंमें अंकित पुण्य पुरुष लगभग एक ही कालके प्रतीत होते हैं । स्व० श्री पं० परमानन्दजीने अपने 'जैनधर्मका प्राचीन इतिहास' द्वि० भा०, पृ० २३९ में 'गोल्लाचार्यका समय लगभग १० वी, ११वीं शताब्दि अनुमानित किया है, गयकर्णदेवका शासन काल भी ११वी, १२वीं शताब्दि होना चाहिये, यह श्री बालचन्दजी भू० पू० क्यूरेटर जबलपुर पुरातत्त्व विभागने 'भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ' पृ० ४०में अनुमानित किया है। इसके अनुसार लगता है कि स्व० श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीने गोल्लाचार्यका जो समय अनुमानित किया है वह ११वी, १२वीं शताब्दि ही होना चाहिये ।
श्री पं० परमानन्दजीने कोई ऐसा ठोस प्रमाण तो दिया नहीं, जिससे उनके द्वारा अनुमानित कालकी पुष्टि हो सके। दोनों लेखोंमें अंकित गोल्हणदेव और गोल्लाचार्य कदाचित् एक ही व्यक्ति हों तो भी कोई आश्चर्य नहीं । न भी हों तो भी कोई बाधा नहीं पड़ती। कम-से-कम गोल्हणदेव नाम होनेसे यह तो सूचित होता ही है कि गोल्हणदेव यह नाम होनेका कारण या तो गोल्लदेशमें जन्म होना हो सकता है या गोल्लदेशका राजा होना इसका कारण हो सकता है। तथ्य क्या है यह अवश्य ही विचारणीय है। साथ ही जिसे
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