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बहाना अनुभाव हैं। विषाद, चिन्ता, स्मृति आदि प्रयोग हुआ है । नवे सर्ग में भाषा के थे समस्त गुण देखे व्यभिचारी भाव हैं। इनसे समृद्ध होकर राजीमती के जा सकते हैं। शोक की अभिव्यक्ति करुण रस के रूप में हुई है।
विवाहय कुमारेन्द्र ! बालाश्चञ्चललोचनाः । इस प्रकार कीतिराज ने काव्य में रसात्मक प्रसंगों के भुक्ष्व भोगान् समं ताभिरप्सरोभिरिवामरः ॥ द्वारा पात्रों के मनोभावों को वाणो प्रदान की है तथा रूप-सौन्दर्य-सम्पन्नां शीलालङ्कारधारिणीम् । काव्य सौन्दर्य को प्रस्फुटित किया है।
झरल्लावण्य-पीयूष-सान्द्र-पीनपयोधराम् ॥ भाषा
हेमाब्जगर्भगौराङ्गों मृगाक्षी कुलबालिकाम् । नेमिनाथ महाकाव्य की सफलता का अधिकांश श्रेय ये नोपभुञ्जते लोका वेधसा वञ्चिता हि ते ॥ इसकी प्रसादपूर्ण प्रांजल भाषा को है। विद्वत्ताप्रदर्शन,
संसारे सारभूतो यः किलायम्प्रमदाजनः । उक्तिटे चित्र्य, अलंकरणप्रियता आदि समकालीन प्रवृत्तियों योऽसारश्चेतवाभाति गर्दभस्य गुणोपमः ॥६।१२-१५ के प्रबल आकर्षण के समक्ष आत्मसमर्पण न करना कीर्ति- शार्दूलविक्रीडित जैसे विशालकाय छन्द में भाषा के राज की मौलिकता तथा सुरुचि का द्योतक है । नेमिनाथ माधुर्य को यथावत् सुरक्षित रखना कवि की बहुत बड़ी महाकाव्य की भाषा महाकाव्योचित गरिमा तथा प्राणवत्ता उपलब्धि हैसे मण्डित है। कवि का भाषा पर पूर्ण अधिकार है किन्तु पुण्याढ्य कमला यथा निजपति योषाः सुशोला यथा अनावश्यक अलंकरण की ओर उसकी प्रवृत्ति नहीं । इसी- सूत्राथं विशदा यथा विवृतयस्तारा यथा शीतगुम् । लिये उसके काव्य में भावपक्ष तथा कलापक्ष का मनोरम पुंसां कर्म यथा धियश्च हृदयं खानां यथा वृत्तयः समन्वय दृष्टिगत होता है । नेमिनाथ महाकाव्य की भाषा सानन्दं कुलकोटयः किल यदूनामन्वगुस्तं तथा ॥ की मुख्य विशेषता यह है कि वह, भाव तथा परिस्थिति
१०।१० के अनुसार स्वत: अपना रूप परिवर्तित करती जाती है। यद्यपि समस्त महाकाब्य प्रसादगुण को माधुरी से फलस्वरूप वह कहीं माधुर्य से तरलित है तो कहीं ओज से ओत-प्रोत है, किन्तु सातवें सर्ग में प्रसाद का सर्वोतम रूप प्रदीप्त । भावानुकूल शब्दों के विवेकपूर्ण चयन तथा कुशल दीख पड़ता है। इसमें जित सहज, सरल तथा सुबोध गुम्फन से ध्वनिसौन्दर्य को सृष्टि करने में कवि ने सिद्ध- भाषा का प्रयोग हुआ है, उस पर साहित्यदर्पणकार को हस्तता का परिचय दिया है । अनुप्रास तथा यमक के सुरु- यह उक्ति "चित्तं व्याप्नोति यः क्षिप्रं शुष्कन्धनमिवानल:' चिपूर्ण प्रयोग से उनके काव्य के माधुर्य में रचनात्मक झंकृति अक्षरशः चरितार्थ होतो है।। का समावेश हो गया है। निम्नलिखित पद्य में यह विशेषता बभौ राज्ञः सभास्थानं नानाविच्छितिसुन्दरम् । भरपूर मात्रा में विद्यमान है।
प्रभोर्जन्ममहो द्रष्टुं स्वविमानमिवागतम् ॥७॥१३ गुरुणा च यत्र तरुणाऽगुरुणा वसुधा क्रियेत सुरभिर्वसुधा। अनेकः स्वार्थमिच्छद्भिविनीपकावनोपकैः । कमनातुरेति रमणेकमना रमणी सुरस्य शुचिहारमणी ॥५।५१ राजमार्गस्तदाकीर्णः खगैरिव फलद्रुमः ॥ ७।१५
शृङ्गार आदि कोमल भावों के चित्रण की पदावली नीतिकथन की भाषा सबसे सरल है। नवे सर्ग में माखन-सी मृदुल, सौन्दर्य-सी सुन्दर तथा यौवन-सी मादक नेमिनाथ की नीतिपरक उक्तियाँ भाषा को इसी सरलता, है। ऐसे प्रसंगों में सर्वत्र अल्लसमास वालो पदावली का मसूणता तथा कोमलता से युक्त हैं ।
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