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[ ५२ । ३ श्री जिनचन्द्रसूरि ( अकबर प्रतिबोधक)- (३) दादा श्री जिनप्रभसूरिजी काजी की टोपी अकबर यह चित्र ७४॥ X १६॥ इन्च लम्बा है। इसमें नगर के (?) के दरबार में । चार दरवाजे हैं जिनमें दो दोनों ओर व दो पास-पास ही श्री जिनप्रभसूरि मुगल की टोपी उतारी आसमान सुं दिखाये हैं। नगर के कुछ मकान व गुंबजदार मस्जिद हैं वधा सु भाव । तथा उपाश्रय का भाव भी दिखाया है। नगर के मध्य में (४) दादा श्री जिनचन्द्रसूरिजी थाली आकाश में शाही दुर्ग-राजप्रासाद है जिसके बाहर दो संतरी पहरा अकबर के दरबार में । शासन देवी द्वारा थाली का प्रदान । दे रहे हैं । महल के बाँयें कक्ष में चौकी पर श्री जिनचंद्र- श्री जिन मणीयाला चन्द्रसूरिजी चन्द्रमा उगायो थाल चढ़ासूरिजी व उनके पृष्ठ भाग में ७ शिष्य बैठे हैं । सामने कर, सो भाव । सिंहासन पर बादशाह बैठा है जिसके पोछे चारव्यक्ति पंखा, (५) श्री जिनदत्तसूरिजी उज्जैन नगरी थांभ फाड़ पोथी किरणिया-आदि राजचिन्हधारी तथा दो उमराव बैठे हैं। निकाली । सामेला करके उज्जैन नगरी में पधारते हैं । सूरिजी के पास एक काली बकरी और दो श्वेतरंग के बच्चे (६) श्री जिनदत्तसूरिजी मुलतान में पांच नदी पांच खड़े हैं । महल के दूसरे कक्ष में भी इसी भाव का चित्र है पर पोर वश किया। सूरिजी और सम्राट को आसमान की ओर देखते दिखाये (७. श्री जिनकुशलसूरिजी महाराज दरियाव में जगत हैं जिससे मालूम होता है कि काजी की टोपी वाला भाव सेठ को जहाज तिरायो । चित्रित करना चित्रकार भूल गया है। उपाश्रय (८) श्री जिनदत्तसूरिजी बादशाह सुं भैसा के मुख सुं कक्ष में शासनदेवी सरिजी को थाल अर्पित करती है जिसे बात कराई सो भाव। आसमान में स्थित चन्द्रोदय देख कर सब लोक विस्मित हो जीयागंज के श्री संभवनाथ जिनालय में २७४ १५ जाते हैं। उपाश्रय में चार साधु व एक श्रावक भी विद्य- साइज के दो चित्र लगे हुए हैं जिनमें एक श्री जिनदत्तमान है । खड़े हुए तीन श्रावकों में एक व्यक्ति हाथ ऊँचा सूरिजी और दूसरा श्री जिनकुगलमूरिजो के जीवनवृत्त से करके अमावस्या का चन्द्रोदय बता रहा है। नगर के संबन्धित है। श्री जिनदत्तसूरिजी के चित्र में बावन वीर, बाहर अश्वारोही व ऊंट सवार दोनों ओर दौड़ते हुए जा चौसठ योगिनी; पंचनदी-पंचपीर, बिनली वश कीधी,
उच्चनगर, बड़नगर, अंबड़ हाथे अक्षर आदि के ७ भाव हैं। जीयागंज के श्री विमलनाथजी के मन्दिर स्थित दादा श्री जिनकुशलसूरिजी के चित्र में 'जीहाजतारी' के भाव के जी के मन्दिर में काठगोला से आये हुए निम्नोक्त महत्व- अतिरिक्त एक में युद्ध चित्र, एक में नगर के उपाश्रय में पूर्ण चित्र लगे हुए हैं। ये चित्र भी यशस्वी चित्रकार विराजमान गुरुदेव व बाह्य दृश्य भी हैं पर चित्र परिचय गणेश के बनाये हुए हैं। परिचय इस प्रकार लिखा है : नहीं दिया है।
(१) कलम गणेश चतेरा की साकीन जयपुर ठि, कलकत्ता के श्री महावीर स्वामी के मंदिर में भी चारचांद गोल दरवाजा खेजड़ा के रस्ते रामनारायणजी तवील- पांच चित्र हैं। जिनमें एक छोटा चित्र मणिधारी जिनचन्द्रसूरिजी दार के पास'बावन वीर चौसठ जोगनो" दादा श्रीजिनदत- और सामने बादशाह (राजा मदनपाल) अपने मुसाहिबों के सूरिजो । साइज १८४२२ ।
साथ है। चाँदा-चन्द्रपुर के जिनालयस्थ दादा देहरी में (२) अजमेर में बिजली पात्र के नोचे।
मगिवारोजी महाराज का वित्र लगा हुआ है। यों छोटे
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