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सूरिजी के चित्रों से होता है। इसके बाद कलिकाल के प्रारम्भ से मंत्र, संत्र खाम्नाय गर्भित अनेक प्रकार के सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य कुमारपाल एटं वादिदेवसूरि-कुमुदचन्द्र के वस्त्र-पट चित्र पाये जाते हैं। तीर्थपट्ट, सूरिमन्त्र पट्ट शास्त्रार्थ के भाव वाले काष्ठफलक पाये जाते हैं । दादा- व वर्द्धमान विद्या पट्ट में भी गुरुओं के चित्र है। हमारे साहब के चित्रित-काष्ठफलकों का परिचय श्री जैन श्वेता- संग्रह का श्री चिन्तामणिपार्श्वनाथ पट्ट जो संवत् १४०० के म्बर पंचायती मन्दिर, कलकत्ता के सार्द्ध शताब्दी स्मृति- आमपास का है, चित्रित है। उसमें श्रीतरुणप्रभसूरिजी ग्रन्थ में मैंने प्रकाशित किया है पर एक महत्त्वपूर्ण काष्ठफलक महाराज और उनके शिष्य का महत्वपूर्ण चित्र अंकित हैं। जिसपर श्री जिनदत्तसूरिजी और त्रिभुवनगिरि के यादव गत दो ढाई सौ वर्षों में दादासाहब के स्वतंत्र चित्र
राजा कुमारपाल का चित्र है और जो जेसलमेर के बड़े बने हुए मिलते हैं जो मन्दिरों, दादावाड़ियों, उपाश्रयों, भण्डार में था पर अब श्री थाहरूशाह के भण्डार में लोगों के मकानों और राजमहलों तक में टंगे हुए पाये जाते वर्तमान है, अब तक प्राप्त कर प्रकाशित न कर सकने का हैं। उन चित्रों में दादासाहब के जोवन चरित की महत्वहमें खेद है।
पूर्ण घटनाएं चित्रित हैं। बीकानेर दुर्ग-स्थित महाराजा पुरातत्त्वाचार्य निनविजयजी के 'भारतीय-विद्या' के गजसिंहजो के मल गजमन्दिर में श्रीजिनचन्द्रसूरि सिंधीजी के संस्मरणांक में एवं हमारे युगप्रधान जिनदत्तसूरि (चतुर्थदादा) और अम्बर बादशाह के मिलन का चित्र लगा ग्रन्थ में प्रकाशित चित्र भी उस समय के आचार्य व श्रमण- हआ है। इसके अतिरिक्त यति जयचन्दजी के संग्रह में, श्रमणी वर्ग के नामोल्लेख युक्त होने से महत्त्वपूर्ण हैं। हमारे श्री जिनचारित्रसुरिजी के पास, बद्रीदासजी के मन्दिर अभय जैन ग्रन्थालय - शंकरदान नाहटा कलाभवन का चित्र कलकत्ता में, पूरणचन्द्र जी नाहर के संग्रह में पंचनदी इन सब चित्रों में प्राचीन है जो दादासाहब के आचार्य पद साधन के एवं लखनऊ, जीयागंज आदि अनेक प्राप्ति ११६६ से पूर्व अर्थात् सं० ११५० के आस-पास का स्थानों में प्राचीन चित्र पाये जाते हैं। उन्हीं के अनुकरण है । पुरातन चित्रकला की दृष्टि से ये उपादान अत्यन्त में तपागच्छ य श्रीमान् हीर विजयसृरिजी महाराज और मूल्यवान हैं।
अकबर मिलन के चित्र भी पिछले पचास वर्षों में बनने ___ काष्ठफलकों के पश्चात् ग्रन्थों में चित्रित पूर्वाचार्यों के प्रारम्भ हुए हैं। प्रसिद्ध वक्ता व लेखक मुनिवर्य श्री विद्याचित्रों में हेमचन्द्राचार्य-कुमारपाल के चित्रों के पश्चात् विजयजी महाराज ने अपने लखनऊ चातुर्मास में सर्वप्रथम खंभात भण्डार स्थित श्रीजिनेश्वरसूरि ( द्वितीय ) का हीरविजयसूरिजी और अकबर का चित्र निर्माण कराया था। चित्र अत्यन्त महत्व का है जो हमारे ऐतिहासिक जन काव्य खरतरगच्छ में चारों दादासाहब एवं जिनप्रभसूरिजी संग्रह में मुद्रित है। तत्पश्चात् कल्पसूत्र, शालिभद्र चौपाई और सुलतान मुहम्मद बादशाह के मिलन सम्बन्धी जितने आदि ग्रन्थों में श्री जिनराजसूरि, श्री जिनरंगसूरि आदि के चित्र पाये जाते हैं उनमें लोकप्रवाद और स्मृति दोष से एक चित्र उपलब्ध हैं। सिंघीजी के संग्रह के शाही चित्रकार का जीवनवृत्त दूसरे से सम्बन्धित समझकर घटा विपर्यय शाहिवाहन चित्रित शालिभद्र चौपाई के ऐतिहासिक चित्र अंकित हो गया है पर हमें यहाँ उसके ऐतिहासिक विश्लेकाल्पनिक न होकर असली है । अठारहवीं-उन्नीसवीं शती के षण में न जाकर लोकमान्यता और श्रद्धा-भक्ति द्वारा विज्ञप्ति-पत्रों में जैनाचार्यों के संख्याबद्ध चित्र संप्राप्त हैं जो निमित चित्रों का परिचय देना ही अभीष्ट है। ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । पन्द्रहवीं शताब्दी सौ वर्ष पूर्व जयपुर के रामनारायणजी तहबीलदार
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