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________________ सामग्री के साथ-साथ खरतरगच्छीय प्रतिष्ठा लेख सूची आदि का भी भविष्य में सुअवसर प्राप्त कर उपयोग करने का विचार है। इस प्रकार के महोत्सव सामाजिक संगठन और नवचेतना जागरण के लिए नितान्त आवश्यक हैं । सं० २०३२ में दादा श्रीजिनदत्तसूरिजी के जन्म को ६०० वर्ष एवं सं० २०३७ में दादा श्रीजिनकुशलसूरिजी के जन्म को ७०० वर्ष पूर्ण होते हैं, आशा है भक्तगण प्राप्त सुअवसर का अवश्य लाभ उठावेंगे । इस ग्रन्थ में दिये गए चित्रों में कई हमारे संग्रह के ब्लाक, श्रीजिनदलसूरि सेवा संघ, जैनभवन, जैन श्वे० पंचायती मन्दिर, परमपूज्या प्रवर्तिनीजी श्रीविचक्षणश्रीजी द्वारा श्रीहीरालाल एण्ड कम्पनी मद्रास से प्राप्त महावीर स्वामी के तिरंगे ब्लॉकों का उपयोग किया गया है जिसके लिए सम्बन्धित सज्जनों का आभार प्रकट किया जाता है । इसकी चित्र सामग्री जुटाने में हमें पूरी चेष्टा करनी पड़ी । गुरुभक्त श्रीलक्ष्मीचन्दजी सेठ का द्वार तो सदा की भांति खुला ही रहता है, साधु-मुनिराजों के व दादावाड़ियों आदि के चित्र उनसे प्राप्त हुए हैं । श्रीहरिसिंहजी श्रीमाल व श्रोमोतीचन्दजी भूरा ने जीयागंज पधार कर वहाँ के दादासाहब सम्बन्धी गणेश मुसब्बर को चित्र - समृद्धि का फोटो लाये, श्रीमानिकचन्दजी चम्पालालजी डागा, चन्द्रपुर से मणिधारोजी का चित्र एवं मोतीलाल गोपालजी ने कच्छ भुज से हमें भद्रेश्वर दादावाड़ी का चित्र भेजा । जैन जर्नल के विद्वान सम्पादक श्रीगणेशजी ललवानी का सहयोग भी अविस्मरणीय है। गुरुदेव के अनन्य भक्त श्री रामलालजी लूणिया तो प्रेरणा स्रोत हैं, प्रत्यक्ष या परोक्ष आत्मीय जनों को सद्भावना और सहयोग से ही कार्य निष्पन्न हुआ है । Jain Education International Bij भारत के सुप्रसिद्ध चित्रकार श्रीइंद्र दूगड़ जो स्वयं गुरुदेव के अनन्य भक्त हैं, हमारे अनुरोध से दिल्लीपति महाराजा मदनपाल के साथ परमपूज्य मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरिजी का एक नयनाभिराम चित्र बनाकर इस शुभ अवसर पर प्रस्तुत किया, जिसके लिए हम किन शब्दों में उनको प्रशंसा करें, वे शब्द मिलते नहीं । ऋषभदेवप्रभु के जीवन प्रसंगों का तिरंगा चित्र, कलकत्ता दादावाड़ी का जिनदत्तसूरि जीवन प्रसंग चित्र, सद्गुरुदेव श्रीसहजानन्द जी महाराज का रेखा चित्र तथा आपके द्वारा लिए हुए महरोली के फोटोग्राफों से हमारे इस ग्रन्थ की शोभा भद्धि हुई है । उनके सुपुत्र संजय दूगड़ द्वारा अङ्कित मणिधारीजी के स्वर्णिम रेखा चित्र ने जिल्द की शोभा बढाई है । इस स्मृतिग्रन्थ के त्वरया प्रकाशन में गुरुदेव की असीम कृपा, हमारे पूज्य साधु- मुनिराजों व साध्वोमण्डल के आशीर्वाद का ही सुफल है। श्री मणिधारीजी अष्टम शताब्दी समारोह समिति ने गुरुदेव की स्मृति स्वरूप यह उत्तम ग्रन्थ प्रकाशन कर जैन समाज का बड़ा उपकार किया है । बंगाल की विषम परिस्थिति व सीमित समय के कारण विश्व खलता व स्खलनादि हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है, इसके लिए हम क्षमा चाहते हुए भविष्य के लिए उचित सुझावों की कामना करते हैं । For Private & Personal Use Only सद्गुरु चरणोपासक अगरचन्द नाहटा, भँवरलाल नाहटा । www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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