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[ १] भी थीं । संघ वायड़, सैरिसा, सरखेज, आशापल्ली होते हुए श्रीमाल, साचौर, गढहा आदि के संघ के समक्ष द्रह दिन खंभात पहुँचा । जिस प्रकार जिनेश्वरसूरिजी के पधारने पर तक दीक्षार्थियों के सत्कार सहित फाल्गुन कृष्ण ६ को सं० १२८६ में महामंत्री वस्तुपाल ने एवं स० १३६४-६७ दीक्षा, प्रतिष्ठा, व्रतोच्चारणादि विविध उत्सव हुए। में सेठ जेसल ने श्री जिनचन्द्रसूरिजी का प्रवेशोत्सव किया राजगृह तीर्थ के वैभारगिरि स्थित चतुर्विंशति जिनालय था उसी प्रकार सूरिजी का इस समय धूमधाम से प्रवेशो- के मूलनायक महावीर स्वामी आदि भनेक पाषाण और सव हुआ। आठ दिन तक नाना उत्सवादि संपन्न कर धातुमय बिम्ब गुरुमूर्तियां आदि को प्रतिष्ठा एवं न्यायकीत्ति आनन्दपूर्वक यात्रा करते हुए शत्रुजय की ओर चले। ललितकीर्ति, सोमकीति अमरकी त्ति, ज्ञानकीर्ति, देवकीतिधांधूका में मन्त्रीदलीय ठ० उदयकरण ने संघ की बहुत ६ साधुओं को दीक्षित दिया। भक्ति की। शगुंजय पहुँच कर सूरिजी ने दूसरी बार यात्रा जालोर से चैत्र कृष्ण में विहार कर समियाणा, खेड़ की। तीर्थ के भंडार में १५००० की आमदनी हुई। नगर होते हुए जेसलमेर महादुर्ग पधारे। सिन्ध देश के आदिनाथ प्रभु के विधि-चैत्य में नवनिर्मित चतुर्दिशति श्रावक अपने उधर पधारने के लिए बार-बार वीनति कर जिनालय, देवकु'लकाओं पर कलश व ध्वजा दि का आरोपण रहे थे अतः पद्रह दिन रहकर सिंध देश के देरावर नगर में हुआ। संघ सहित सूरिमह राज तलहटी में आये। पधारे । वहां स्वप्रतिष्ठिन आदिनाथ प्रश्न का वन्दन किया। लौटते समय सरिसा, संखेश्वर, पाडल होते हुए श्रावण शुक्ला फिर उच्च नगर पधारकर हिन्दु-मुसलमान सबको धर्मोपदशों ११ को भीमपल्ली पधारे।
से आनन्दित किया। एक मास रहकर वापिस देरावर __ सं० १३८२ वैशाख शुक्ला ५ को विनयप्रभ, मतिप्रभ, पधारे। सं० १३८४ माघ शु० ५ को उच्च, देरावर, हरिप्रभ, सोमप्रभ साधु एवं कमलश्री, ललितश्री को समा- क्यासपूर बहरामपूर, मलिकपुर के श्रावकों और अधिकारोहपूर्वक दीक्षा दी। पत्तन, पालनपुर, बीजापुर, आशा- रियों के अनुरोध से प्रतिष्ठा, व्रतग्रहण आदि बड़े विस्तार से पल्ली आदि का संघ भी उपस्थित था । तीन दिन अमारि सम्पन्न किये। राणुककोट, क्यासपुर के लिए दो आदिनाथ उद्घोषणा के साथ बड़े उत्सव हुए। फिर सूरिजी साचौर मलनायकबिंब व धातु-पाषाण की अनेक प्रतिमाए प्रतिष्ठित पधारे । मासकल्प करके लाटहृद पधारे। संघ के आग्रह से की। भाव मूत्ति, मोदमूर्ति, उदयमूर्ति, विजयमूर्ति, बाड़मेर में चौमासा करके श्री जिनदत्तसूरि रचित चैत्य- हेममति, भद्रमत्ति, मेवमूर्ति, पद्ममूर्ति, हर्षमूर्ति आदि नौ वंदनकुलक पर विस्तृत वृत्ति की रचना की। सं० १३८३ साध, कुलधर्मा, विनयधर्मा और शीलधर्मा नामक तीन पौष शुक्ला १५ को जेसलमेर, लाटह्रद, साचौर, पालनपुरीय साध्वियों की दीक्षा हुई। संघ के समक्ष अमारि घोषणापूर्वक बड़ो दोक्षा आदि सं. १३८५ फाल्गन शु० ४ के दिन उच्चापुर, बहिअनेक उत्सव हुए । तदनन्तर जालोर संघ की विनती से रामपुर, क्यासपुर के खरतर गच्छीय संघ की विद्यमानता विहार करके लवणखेटक पधारे। यहाँ सूरिजी के पूर्वज में नवदीक्षितों को उपस्थापना, अनेकों व्रतग्रहण व कमलाकर उद्धरण वाहित्रिक कारित शांतिनाथ-जिनालय था एवं गणि को वाचनाचार्य पद दिया। सं० १३८६ में बहिगुरु जिनचन्द्रसूरिजी का जन्म एवं दीक्षा यहीं हुई थी। रामपुर पधारे। वहां धर्मप्रभावना कर क्यासपुर के हिन्दुयहाँ से समियाणा ( जन्मभूमि ) होते हुए जालोर पधारे। मुसलमान सबको आनन्दित किया। ६ दिन उत्सवादि यहां उच्चपुर, देवराजपुर, पाटण, जेसलमेर, सिवाणा, के पश्चात् खोजावाहन पधारकर क्यासपुर पधारे । मुसल
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