________________
। १७ नाम से प्रकाशित करवा दिया है। स्व० मुनि कान्ति- (द्रौपदी विषयक ) ३ कादम्बरी मंडन ( कादम्बरी का सागरजी ने इनके एक अन्य ग्रन्थ भूगर्भप्रकाश (श्लोक सार ) ४ शृगार मंडन ५ अलंकार मंडन ६ संगीत मंडन ५१) का उल्लेख किया है पर हमें अभी तक कहीं से प्राप्त ७ उपसर्ग मंडन ८ सारस्वत मंडन ( सारस्वत व्याकरण पर नहीं हो सका है।
विस्तृत विवेचन ) चंद्रविजय प्रबन्ध ।" इनमें से कई चौदहवीं शताब्दी के श्रावक कवि समधर रचित नेमि- नथ तो मंडन नथावली के नाम से दो भागों में 'हेमचंद्र नाथ फागु गा० १४ का प्रकाशित हो चुका है। पन्द्रहवीं सूरि नथमाला" पाटण से प्रकाशित हो चुके हैं । शताब्दी के जिनोदयसूरि के श्रावक विद्धणु की शानपंचमी
"मंडन की तरह धनराज या धनद भी बड़ा अच्छा चौपई सं० १४२१ भा० शु० ११ गुरु को रची गई।
विद्वान था। इसने 'धनद त्रिशती' नामक नथ भर्तृहरि कवि विद्धणु ठक्कुर माहेल के पुत्र थे, इसकी प्रति पाटण के
की तरह शतकत्रयी का अनकरण करने वाला लिखा है। संघ भंडार में उपलब्ध है। खरतरगच्छ के महान् संस्कृत विद्वान श्रावक कवि
यह काव्यत्रय निर्णयसागर प्रेप काव्यमाला १३ वे गुच्छक
में छप चुका है। इन मंथों में इनका पाण्डित्य और कवित्व मण्डन मांडवगढ में रहते थे और आचार्य श्रीजिनभद्रसूरिजी
अच्छी तरह प्रगट हो रहा है । के परम भक्त थे। इन्होंने ठक्कुर फेरू को भांति इतने अधिक विषयों पर संस्कृत ग्रन्थ बनाये हैं जितने और किसी
मंडन का वंश और कुटुम्ब खरतरगच्छ का अनुयायी श्रावक के प्राप्त नहीं है। मंत्री मंडन श्रीमाल वाहड़ के
था। इन भ्राताओं ने जो उच्च कोटि का शिक्षण प्राप्त
किया था वह इसी गच्छ के साधुओं की कृपा का फल पुत्र थे इनके जीवनी के संबन्ध में इनके आश्रित महेश्वर कवि ने "काव्य मनोहर" नामक काव्य रचा है। मुनि
था। इस समय इस गच्छ के नेता जिनभद्रसूरि थे इस जिन विजयजी ने विज्ञप्ति-त्रिवेणी में मंत्री मंडन संबन्धी
लिये उनपर इनका अनुराग व सद्भाव स्वभावत: ही
अधिक था। इन दोनों भाइयों ने अपने अपने प्रथो में इन अच्छा प्रकाश डाला है। वे लिखते हैं-"ये श्रीमाल जाति के सोनिगिरा वंश के थे । इनका वंश बड़ा गौरवपूर्ण
आचार्य की भूरि भूरि प्रशंसा की है। इनने जिन भद्रसूरि व प्रतिष्ठावान था। मंत्री मंडन और धनदराज के पितामह के उपदेश से एक विशाल सिद्धान्त कोष लिखाया था। का नाम 'झंझण' था। मंडण बाहड़ का छोटा पुत्र था व
वह ज्ञानभंडार मांडवगढ़ का विध्वंश होने से विखर गया धनदराज देहड़ का एक मात्र पुत्र था इन दोनों चचेरे
सोही नर पर उसकी कई प्रतियां अन्यत्र कई ज्ञानभंडारों में प्राप्त है।
पर उसका भाइयों पर लक्ष्मीदेवी की जैसो प्रसन्न दृष्टि थी वैसे सर- प्रगट-प्रभावी श्रीजिनकुशलसूरिजी के दिव्याष्टक, स्वती देवी की पूर्ण कृपा थो अर्थात् ये दोनों भाई श्रीमान् जिसकी रचना जिनपद्मसूरिजी ने की थी, पर घरणीधर को होकर विद्वान भी वैसे ही उच्चकोटि के थे।"
अवचूरि प्राप्त है पर कवि का विशेष परिचय और समय को "मंडन ने व्याकरण, काव्य, साहित्य, अलंकार और निश्चित जानकारी नहीं मिल सकी। सोलहवीं शताब्दी के संगीत आदि भिन्न-भिन्न विषयों पर मंडन शब्दाडित अनेक श्रावक कवि लक्ष्मोसेन वीरदास के पौत्र एवं हमीर के ग्रंथ लिखे हैं। इनमें से ६ नथ तो पाटण के बाड़ी पार्श्व- पुत्र थे। उन्होंने केवल सोलह वर्ष की आयु में जिन नाथ भंडार में सं० १५०४ लिखित उपलब्ध हैं: जो ये वल्लभसूरि के संघपट्टक जैसे कठिन काव्य की वृत्ति सं० हैं-१ कायमंडन (कौरव पांडव विषयक ) २ चम्पूमंडन १५११ के श्रावण में बनाई।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org