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दादाजी आज भारतवर्ष में कौन ऐसा जैनमतावलम्बी होगा जो कि पूज्य दादा के नाम से परिचित न हो। पूज्यादा का नाम जैनमतावलम्बी बच्चे-बच्चे तक की जिह्वा पर नर्तन करता है। केवल जैनमतावलम्बी हो नहीं जेनेतर भो अधिकांश व्यक्ति दादा के नाम से पूर्ण परिचित हैं, दादा ये दो शब्द उसके कर्णकुहरों में प्रवेश पा चुके हैं और नहीं तो देश के कोने-कोने में प्रत्येक नगरों व कस्बों में 'दादाबाड़ी' नाम से प्रसिद्ध स्थानों ने इस शब्द से प्रत्येक नागरिक को परिचित बना दिया है। बहुत से नागरिक चाहे वे जैनी हों या जैनेतर, प्रातः सायं इन दादावाड़ियों में दादा की वन्दना के लिए, आराधना के लिये या स्वास्थ्यलाभार्थ भ्रमण के लिये हो सही, अवश्य जाया करते हैं । सभी व्यक्तियों को उन स्थानों में जाने से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में एक अलौकिक शान्ति का अनुभव होता है। वह और कुछ नहीं किन्तु पूज्य दादा के व्यक्तित्व का परोक्ष प्रभाव ही है।
___इतना होते हुए भी जैनेतर व्यक्तियों में अधिकांश व्यक्ति दादा शब्द के अभिधेय उस अलौकिक प्रभावशालो महापुरुष तथा उस के अद्वितीय महागुणों से सर्वथा अनभिज्ञ हैं वे केवल इतना ही समझते हैं कि 'दादा' जैन समाज में कोई प्रभावशाली महापुरुष हुआ है जिसके नाम पर इन दादावाड़ियों को स्थापना हुई है और उन्हों की वन्दना के लिए प्रतिदिन हजार व्यक्ति इस जगह जाया करते हैं इतना ही नहीं कतिपय जैनी भी उनके वास्तविक व्यक्तित्व व गणों से अपरिचित ही हैं।
वस्तुत: 'दादा' इस द्वयक्षर शब्द से दादा इस सामान्य अर्थ की ही प्रतीति नहीं होती किन्तु इसके साथ ही माथ अनेक अन्य अर्थों को भी प्रतीति होती है। दादा शब्द के उच्चारण करने पर जिन-शासन को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाने वाले, समय-प्रभाव से जैनसम्पदाय में समागत कुरीतियों, कदाचारों, कदाग्रहों व शिथिलाचारों का अपनो दृढ़ विवेकमयी व कान्तिमयी विचारधारा से समूल उच्छेद करने वाले, सिन्ध, गुजरात व मरुस्थल में सर्वाधिक जिनशासन का प्रचार व प्रसार करने वाले, युगप्रधान आचार्यों में सर्वातिशायो चमत्कार व प्रभाव से अलङकृत अलौकिक महापुरुष अर्थ की प्रतीति होती है। दादाने उस चमत्कार का प्रदर्शन किया जिससे आकृष्ट होकर चैत्यवासियों तक ने सुविहित वसतिवास को स्वीकार किया, राजाओं, महाराजाओं, योगिनियों व देवों तक ने उनके आगे अपना मम्तक झुकाया, सर्वत्र जैनधर्म का अत्यधिक प्रचार व प्रसार हुआ, बड़े-बड़े प्रतिपक्षी विद्वद्गजेन्द्रों का मद उनके प्रखर व प्रकाण्ड पाण्डित्य से शान्त हुआ, लाखों से अधिक व्यक्ति इच्छा से जिनशासनानुयायी बने।
उनने अपने जीवन-काल में हो अनेक चमत्कारों का प्रदर्शन किया यह बात नहीं, आज भी उनके अनेक प्रकार के चमत्कार लोगों के द्वारा प्रत्यक्ष अनुभूत किये जाते हैं। जैन व जैनेतर जनता के जीवन में दादा ओतप्रोत हैं। वे किसी का व्यन्तरोपद्रव दूर करते हैं तो किसी का योगिनी उपद्रव। किसो के भतोपद्रव को वे शान्ति करते हैं तो किसी के महामारी जन्य उपद्रव की। किसो को घोर काननों में मार्ग-प्रदर्शन करते हैं तो किसो के समुद्र के तुफान से घिरे हुए जहाज को समुद्र से पार लगाते हैं। किसो को आपत्ति का निराकरण करते हैं तो किसी का मनोवाञ्छित पूर्ण करते हैं। किसी को जाग्रत में. तो किसी को स्वप्न में किसी को प्रत्यक्ष रूप में तो किसी को अप्रत्यक्ष रूप में वे दर्शन अब भी देते हैं। पथ-भ्रष्ट का वे पथ-प्रदर्शन करते हैं और उन्मार्गप्रवृत्त को सन्मार्ग पर लाते हैं। ये हो सब नानाविध चमत्कार हैं जिनके कारण आज सब जगह दादा का नाम सुनाई देता हैं, सब जगह उनके स्थान बनाये जाते हैं तथा उनको वन्दनायें की जाती हैं । धन, पद, सन्तान व परमपद को प्राप्ति के लिये भो लोग उनकी उपासना करते हैं और अपना अभीष्ट फलोत्र ही प्राप्त करते हैं ।
[ स्वामी सुरजनदास के दादाजो और उनका साहित्य से ]
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