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डॉ० सागरमल जैन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
विद्या प्रदाता गुरु (प्रो. सागरमल जैन) को अविराम वन्दन
डॉ० सुरेश सिसोदिया, उदयपुर प्रो० सागरमल जैन से मेरा परिचय विगत १२ वर्षों से तब से है जब से मैं उनके मार्गदर्शन में प्राकृत भाषा एवं जैन विद्या के क्षेत्र में अध्ययन-अनुसंधान एवं लेखक हेतु पार्श्वनाथ शोधपीठ, वाराणसी जाने लगा। प्रतिवर्ष उनके मार्गदर्शन में एक-दो महिने वहाँ रहकर मैंने उनसे जो ज्ञान प्राप्त किया है उसी का परिणाम है कि आज मैं प्रकीर्णक ग्रन्थों के अनुवाद कार्य में संलग्न रहकर जैन दर्शन के क्षेत्र में कार्यरत हूँ। मेरे लेखन और चिंतन को विकसित करने का सारा श्रेय प्रो० सागरमल जैन को ही जाता है।
प्रो० जैन ने अनेक ग्रन्थों का सम्पादन, अनुवाद, एवं मौलिक सृजन किया है । आप द्वारा लिखित एवं सम्पादित ग्रन्थ विद्वत्जन एवं साधारण जन दोनों में समान रूप से समादित हैं । जैन, बौद्ध और हिन्दू परम्परा के आप अधिकारी विद्वान हैं आपकी विद्वता की चर्चा करने हेतु न तो मैं अधिकारी हूँ और न ही इस परिपत्र की परिधि मुझे इसकी इजाजत् देती है तथापि आपके लिए यह उल्लेख करना मैं अपना दायित्व मानता हूँ कि युवा विद्वानों के प्रति आपका स्नेह एवं सहयोग विशेष रूप से प्रशंसनीय है। पार्श्वनाथ शोधपाठ के निदेशक पद पर रहते हुए आपने युवा विद्वानों, सरस्वती पुत्रों और लेखकों की जो एक पंक्ति खड़ी की है उस पर समाज को बड़ा गर्व है । जैन विद्या के क्षेत्र में कार्य करने वाले आधे से अधिक युवा विद्वान् किसी न किसी रूप में आपके सहयोग एवं मार्गदर्शन प्राप्त किये हुए हैं । देश का शायद ही कोई ऐसा भाग शेष रहा हो जहाँ आपके शिष्य न मिले।
शिक्षा के क्षेत्र में आपका अवदान सदैव स्मरणीय रहेगा । वाराणसी का पार्श्वनाथ शोधपीठ आपके जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। अपने जीवन का अमूल्य समय लगाकर आपने उसकी जो सेवा की है वह अमिट है। आपके बिना पार्श्वनाथ शोधपीठ की तथा शोधपीठ के बिना आपकी चर्चा अधूरी है। आपकी कार्य प्रणाली ने पार्श्वनाथ शोधपीठ को आज जैन विद्या की अंग्रिम शोध संस्थान के रूप में सुस्थापित कर दिया है । देश में ही नहीं विदेशों में भी आज शोधपीठ की बड़ी ख्याति
प्रो० जैन ही नहीं आपके परिवारजनों से भी मुझे बड़ी ही आत्मीयता प्राप्त होती रही है। गुरू पत्नी आंटीजी (श्रीमती कमला देवी) बहुत सहृदया महिला हैं । सदैव आपने मुझे पुत्रवत् स्नेह दिया है । आपके दोनों पुत्र नरेन्द्र एवं पीयूष तथा पुत्रवधु सरला एवं चित्रा भाभीजी का भी मुझे अत्यन्त स्नेह एवं आत्मीयता प्राप्त हुआ है। आपकी पौत्री सोनाली मेरी अतिप्रिय बहिन है उसका स्नेह एवं आत्मीयता मेरे मानस पटल पर सदैव अंकित रहती है। आपके पूरे परिवार में जो अपनत्व का भाव है वो अन्यत्र सहज ही दृष्टिगोचर नहीं होता है।
जैन विद्या के मनीषी विद्वान् मेरे पिता तुल्य प्रो० सागरमल जैन को मै अविराम वन्दन करता हूँ तथा इनके सस्वथ्य शतायु होने की मंगल कामना करता हूँ।
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