________________
पर्युषण पर्व : एक विवेचन
भारत पर्वो (त्योहारों) का देश है। वैसे तो प्रत्येक मास में कोई के विशेष नियम। आयारदशा (दशाश्रुतस्कन्ध) के पज्जोसवणाकप्प न कोई पर्व आता ही है, किन्तु वर्षा ऋतु में पर्वो की बहुलता है नामक अष्टम अध्याय में साधु-साध्वियों के वर्षावास सम्बन्धी विशेष जैसे- गुरुपूर्णिमा, रक्षाबन्धन, जन्माष्टमी, ऋषि पञ्चमी, गणेश चतुर्थी, आचार-नियमों का उल्लेख है। अत: इस सन्दर्भ में पज्जोसवण का अनन्त चतुर्दशी, श्राद्ध, नवरात्र, दशहरा, दीपावली आदि-आदि। वर्षा अर्थ वर्षावास होता है। ऋतु का जैन परम्परा का प्रसिद्ध पर्व पर्युषण है। जैन परम्परा में पर्वो (२) निशीथ में इस शब्द का प्रयोग एक दिन विशेष के को दो भागों में विभाजित किया गया है- एक लौकिक पर्व और अर्थ में हुआ है। उसमें उल्लेख है कि जो भिक्षु 'पज्जोसवणा' में दूसरा आध्यात्मिक पर्व। पर्युषण की गणना आध्यात्मिक पर्व के रूप किंचित्मात्र भी आहार करता है उसे चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। में की गई है। इसे पर्वाधिराज कहा गया है। आगमिक साहित्य में इस सन्दर्भ में 'पज्जोसवण' शब्द समग्र वर्षावास का सूचक नहीं हो उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर पर्युषण पर्व का इतिहास दो सहस्र सकता है, क्योंकि यह असम्भव है कि सभी साधु-साध्वियों को चार वर्ष से भी अधिक प्राचीन प्रतीत होता है। यद्यपि प्राचीन आगम साहित्य मास निराहार रहने का आदेश दिया गया हो। अत: इस सम्बन्ध में में इसकी निश्चित तिथि एवं पर्व के दिनों की संख्या का उल्लेख नहीं पज्जोसवण शब्द किसी दिन विशेष का सूचक हो सकता है, समग्र मिलता है। मात्र इतना ही उल्लेख मिलता है कि भाद्र शुक्ला पञ्चमी वर्षाकाल का नहीं। का अतिक्रमण नहीं करना चाहिये। वर्तमान में श्वेताम्बर परम्परा का पुनः यह भी कहा गया है कि जो भिक्षु अपर्युषणकाल में मूर्तिपूजक सम्प्रदाय इसे भाद्र कृष्ण द्वादशी से भाद्र शुक्ल चतुर्थी तक पर्युषण करता है और पर्युषण काल में पर्युषण नहीं करता है, वह तथा स्थानकवासी और तेरापंथी सम्प्रदाय इसे भाद्र कृष्ण त्रयोदशी दोषी है।६ यद्यपि यहाँ ‘पज्जोसवण' के एक दिन विशेष और से भाद्र-शुक्ल पञ्चमी तक मानता है। दिगम्बर परम्परा में यह पर्व वर्षावास दोनों ही अर्थ ग्रहण किये जा सकते हैं। फिर भी इस प्रसङ्ग भाद्र शुक्ल पञ्चमी से भाद्र शुक्ल चतुर्दशी तक मनाया जाता है। उसमें में उसका अर्थ एक दिन विशेष करना ही अधिक उचित प्रतीत इसे दशलक्षण पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार श्वेताम्बर होता है। परम्परा में यह अष्ट दिवसीय और दिगम्बर परम्परा में दश दिवसीय (३) निशीथ में पज्जोसवण का एक अर्थ वर्षावास के लिए स्थित पर्व है। इसके जितने प्राचीन एवं विस्तृत ऐतिहासिक उल्लेख श्वेताम्बर होना भी है। उसमें यह कहा है कि जो भिक्षु वर्षावास के लिए स्थित परम्परा में प्राप्त हैं, उतने दिगम्बर परम्परा में नहीं हैं। यद्यपि दस (वासावासं पज्जासवियसि) होकर फिर ग्रामानुग्राम विचरण करता है, कल्पों (मुनि के विशिष्ट आचारों) का उल्लेख श्वेताम्बर एवं दिगम्बर वह दोष का सेवन करता है। अत: इस सन्दर्भ में पर्युषण का अर्थ दोनों परम्पराओं में पाया जाता है। इन कल्पों में एक 'पज्जोसवणकप्प' वर्षावास बिताने हेतु किसी स्थान पर स्थित रहने का संकल्प कर लेना (पर्युषण कल्प) भी है। श्वेताम्बर परम्परा के बृहद्-कल्प भाष्य' में, है अर्थात् अब मैं चार मास तक इसी स्थान पर रहूँगा ऐसा निश्चय दिगम्बर परम्परा के मूलाचार में और यापनीय परम्परा के ग्रन्थ भगवती कर लेना है। ऐसा लगता है कि पर्युषण वर्षावास के लिए एक स्थान आराधना में इन दस कल्पों का उल्लेख है। किन्तु इन ग्रन्थों की पर स्थिति हो जाने का एक दिन विशेष था- जिस दिन श्रमण संघ अपेक्षा भी अधिक प्राचीन श्वेताम्बर छेदसूत्र-आयारदशा (दशाश्रुतस्कन्ध) को उपवासपूर्वक केश-लोच, वार्षिक प्रतिक्रमण (सांवत्सरिक प्रतिक्रमण) तथा निशीथ में ‘पज्जोसवण' का उल्लेख है। आयारदशा के आठवें और पज्जोसवणाकप्प का पाठ करना होता था। कल्प का नाम ही पर्युषण कल्प है, जिसके आधार पर ही आगे चलकर कल्पसूत्र की रचना हुई है और जिसका आज तक पर्युषण के दिनों पर्युषण के पर्यायवाची अन्य नाम में वाचन होता है।
___ 'पर्युषण' के अनेक पर्यायवाची नामों का उल्लेख निशीथभाष्य
(३१३९) तथा कल्पसूत्र की विभिन्न टीकाओं में उपलब्ध होता है। पर्युषण (पज्जोसवण) शब्द का अर्थ
इसके कुछ प्रसिद्ध पर्यायवाची शब्द निम्न हैं- पज्जोसमणा ___ आयारदशा एवं निशीथ आदि आगम ग्रन्थों में पर्युषण शब्द (पर्युपशमना), परिवसणा (परिवसना), पज्जूसणो (पर्युषण), वासावास के मूल प्राकृत रूप पज्जोसवण शब्द का प्रयोग भी अनेक अर्थों में (वर्षावास) पागइया (प्राकृतिक), पढमसमोसरण (प्रथम समवसरण), हुआ है। निम्न पंक्तियों में हम उसके इन विभिन्न अर्थों पर विचार परियायठवणा (पर्यायस्थापना), ठवणा (स्थापना), जट्ठोवग्ग (ज्येष्ठावग्रह)। करेंगे।
इसके अतिरिक्त वर्तमान में अष्टाह्निक पर्व या अठाई महोत्सव नाम (१) श्रमण के दस कल्पों में एक कल्प ‘पज्जोसवणकल्प' है। भी प्रचलित है। इन पर्यायवाची नामों से हमें पर्युषण के वास्तविक पज्जोसवणकप्प का अर्थ है- वर्षावास में पालन करने योग्य आचार स्वरूप का भी बोध हो जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org