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श्रमण संघ हो अविचल मंगल
आशीर्वचन
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आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म
प्रो० सागरमल जी जैन स्थानकवासी जैन समाज की एक प्रतापपूर्ण प्रतिभा के धनी महामनीषी हैं. जीवन के ऊषाकाल में उनका रूझान व्यवसाय की ओर था किन्तु बाद में जीवन ने नया मोड़ लिया और व्यापारी से अथक प्रयास कर आज जैन विद्वानों में अग्रणी बन गये हैं, उन्होंने जेन आगम, दर्शन और जैन विद्या का तलस्पर्शी अनुशीलन परिशीलन कर जिन ग्रंथों का निर्माण किया है वे ग्रंथ कालजयी हैं ऐसे विद्वान का अभिनन्दन कर जैन समाज ने एक
स्थान दिनांक
उज्ज्वल, समुज्ज्वल आदर्श उपस्थित किया है. वह सरस्वती पुत्र सदा स्वस्थ और प्रसन्न रहकर जैन विद्या के क्षेत्र में अनवरत कार्य करते रहे यही मंगल मनीषा है उन्होंने पार्श्वनाथ शोध संस्थान में भी जो कार्य किया है, वह कार्य
इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा.
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उदयपुर
..19/3/98..
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