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जैन विद्या के आयाम खण्ड
तात्त्विकता एवं सात्विकता के मणिकांचन सुयोग : डॉ० सागरमल जैन
साध्वी हेमप्रभा *
तात्त्विकता के साथ सात्विकता का सुयोग अलभ्य नहीं तो दुर्लभ्य अवश्य है। ऐसे व्यक्ति विरल हैं जिनमें तात्त्विकता और सात्विकता दोनों का 'मणिकांचन' सुयोग हो ।
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डॉ० सागरमल जैन ऐसे ही विरल व्यक्तित्व के धनी हैं, जिनकी तात्त्विकता सात्विकता से महिमामण्डित है । यही कारण है कि वे प्रसिद्धि के दास न बनकर सदा ज्ञानसाधना के स्वामी बने रहे। उनका आभामण्डल इस बात का ठोस प्रमाण है। एक अनिर्वचनीय आत्म शान्ति व आत्मतृप्ति की अनुभूति होती है उनके आभामण्डल में प्रवेश करने के पश्चात् । उनका निरभिमानी अप्रमत्त - जीवन हर व्यक्ति को उन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये प्रेरित करता है, जिनके बिना यह जीवन व्यर्थ है । .
मुझे गर्व है कि वे मेरी जन्मभूमि के सपूत है। इतना ही नहीं, मेरे और उनके परिवार के बीच अच्छा स्नेहानुबंध है। मेरी बाल-सुलभ चपलताओं के वे साक्षी हैं। वास्तव में उन जैसे व्यक्तित्व को पाकर शाजापुर की धरा धन्योत्तमा है। कौन जानता था कि पारिवारिक व व्यावसायिक उत्तरदायित्व के बोझ से लदा व्यक्ति जैनधर्म एवं दर्शन का मर्मज्ञ विद्वान्, धर्म के प्रति अटूट आस्थावान, भारतीय संस्कृति का उद्गाता एवं ऐतिहासिक तथ्यों का निर्भीक प्रस्तोता बनेगा । यह उनकी जिज्ञासा, कठोरश्रम और स्वाध्यायशीलता का ही सुपरिणाम है।
पर चाहते हुए भी वर्षों तक उनके मौलिक चिंतन से कुछ पाने का सुयोग नहीं मिल पाया । गत वर्ष मेरी अन्तेवासिनी साध्वी विनीतप्रज्ञा के 'शोध-प्रबंध के निर्देशन हेतु डाक्टर साहब का बाम्बे आगमन हुआ तब उनके आगमिक स्पष्ट चिन्तन का अनूठा लाभ मुझे भी मिला तथा आचारपूत उनकी विद्वत्ता ने मन को प्रभावित भी किया। लगा कि आन्तरिक ऊँचाईयों के सम्मुख, बड़प्पन की आधुनिक मान्यतायें कितनी खोखली हैं। एक सप्ताह के निकट के परिचय से उनके बारे में जो सुना था वह तो सत्य प्रमाणित हुआ ही साथ ही उनके व्यक्तित्व के कई नये पहलू उजागर हुए।
अन्तर में सहसा एक स्वर मुखरित हो उठा कि 'डॉ० सागरमल जैन विद्वान् ही नहीं एक संत हैं ।'
* दादावाड़ी-पुणे
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जो सम-विषम अनुकूल एवं प्रतिकूल सभी स्थितियों में सदा सन्तुलित रहते हैं ।
जो मान-सम्मान की चाह से कोसों दूर हैं I
सरलता सहजता, सादगी व संयम जिनके पर्याय हैं।
जो अध्ययन-अध्यापन चिन्तन-मनन व लेखन के क्रम में सदा अप्रमत्त भाव से डूबे रहते हैं ।
राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त इन मनीषी संत के अभिनंदन की मंगलबेला में अगणित शुभाशंसाओं के साथ, वे दीर्घजीवी बनें, अपने जीवन एवं सृजन में शाश्वत मूल्यों की प्रतिष्ठा करते हुए अतिशीघ्र शाश्वत सुख का वरण करें.. यही मंगलकामना है ।
चिरंजीव..........
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चिरंनन्द
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