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पुरुषार्थ
अर्थ
जैन विद्या के आयाम खण्ड-६
१९२ पाश्चात्य दृष्टिकोण भारतीय दृष्टिकोण जैन दृष्टिकोण ६. देखिए-कल्पसूत्र, सं० देवेन्द्रमुनि; तारकगुरु ग्रन्थमाला उदयपुर १९७५. मूल्य
७. योगशास्त्र, १/५२. जैविक मूल्य
८. दशवैकालिकनियुक्ति, २६२-२६४.
९. दीघनिकाय,३/८/२. १. आर्थिक मूल्य अर्थ पुरुषार्थ २. शारीरिक मूल्य कामपुरुषार्थ काम
१०. वही, ३/८/४. " " ३. मनोरंजनात्मक मूल्य
११. वही, ३/८/४. सामाजिक मूल्य
१२. वही, ३/३/४. ४. संगठनात्मक मूल्य धर्मपुरुषार्थ व्यवहारधर्म
१३. सुत्तनिपात, २६/२९. ५. चारित्रिक मूल्य निश्चयधर्म
१४. मज्झिमनिकाय, २/३२/४. आध्यात्मिक मूल्य
१५. उदान, जात्यन्धवर्ग, ८. ६. कलात्मक आनन्द (संकल्प) अनन्त सुख एवं शक्ति
१६. मज्झिमनिकाय, १/२२/४. ७. बौद्धिक चित् (ज्ञान) अनन्तज्ञान
१७. गीता, १८/३४. ८. धार्मिक सत् (भाव) अनन्तदर्शन
१८. वही, १७/२१. इस प्रकार अपनी मूल्य-विवेचना में प्राच्य और पाश्चात्य
१९. वही, १८/६६. विचारक अन्त में एक ही निष्कर्ष पर आ जाते हैं और वह निष्कर्ष यह
२०. वही, १६/१०, १२, १५. है कि आध्यात्मिक मूल्य या आत्मपूर्णता ही सर्वोच्च मूल्य है एवं वही
२१. वही, ७/११. नैतिक जीवन का साध्य है।
२२. वही, ३/१३. यद्यपि भारतीय दर्शन में सापेक्ष दृष्टि से मूल्य सम्बन्धी सभी विचार स्वीकार कर लिये गये हैं, फिर भी उसकी दृष्टि में आत्मपूर्णता,
२३. मनुस्मृति, ४/१७६.
२४. महाभारत, अनुशासनपर्व, ३/१८-१९. वीतरागावस्था या समभाव की उपलब्धि ही उसका एकमात्र परम मूल्य
२५. कौटिलीय अर्थशास्त्र, १/१७. है, किन्तु उसके परममूल्य होने का अर्थ एक सापेक्षिक क्रम व्यवस्था
२६. महाभारत, शान्तिपर्व, १६७/१२-१३. में सर्वोच्च होना है। किसी मूल्य की सर्वोच्चता भी अन्यमूल्य सापेक्ष ही
२७. कौटिलीय अर्थशास्त्र, १/७. होती है, निरपेक्ष नहीं। अत: मूल्य, मूल्य-विश्व और मूल्यबोध सभी
२८. महाभारत, शान्तिपर्व, १६७/२९. सापेक्ष है।
२९. वही, १६७/३५. ३०. वही, १६७/४०.
३१. वही, १६७/८. १. Contemporary Ethical Theories,Chapter-17 pp.774
३२. वही, १६७/४६. 284.
३३. बुभुक्षित: किं न करोति पापम? मरणसमाधि, ६०३.
३४. शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। उत्तराध्ययन, १३/१६.
३५. निशीथभाष्य, ४१५९. प्राकृत सूक्तिसरोज, ११/११.
३६. फण्डामेण्टल आफ एथिक्स, पृ० १७०-१७१. ५. प्राकृत सूक्तिसरोज, ११/७.
संदर्भ
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