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ज्यो ति म य जी व न
-जिनेन्द्र मुनि, साहित्य विशारद, काव्यतीर्थ [ श्री गणेश मुनिजी शास्त्री के सुशिष्य, कवि एवं लेखक ]
गुणसागर आचार्यप्रवर श्री "आनन्द" आनन्ददायक हैं। डूब रहे जो भवसागर में, उनके सदा सहायक हैं । ज्ञानी ध्यानी परम तपस्वी, संयम पथ के ये साधक । वायुवेग से बढ़कर अविरल, बने श्रेष्ठतम आराधक ॥ उज्ज्वल ज्ञानालोक संग ले, जो जग में हैं ज्योतिर्मान । जिन्हें प्राप्त कर हर्षित जनगण, करते रहते हैं जयगान ॥ गौरवशाली महिमा भारी, जगतीतल पर छाई है। तपस्तेज को आभा तुमने, अति उज्ज्वल चमकाई है ॥ वाणी जिनकी परम पावनी, उद्बोधक है कल्याणी। भारत के हर ग्राम नगर में, [जा रहे हैं जिनवाणी॥ ज्ञानभक्ति सत्कर्म भाव को, निर्मल धारा बहती है। जीवन के कण-कण में जिनके त्याग भावना रहती है। धीर वीरता धरणी के सम, जो जिन-शासन चमकाते । जैनधर्म के दिव्य दिवाकर, जिन वर-गरिमा-गुण गाते ॥ शुभ्र ज्योति का पुंज दिवाकर, जग प्रकाश को पाता है। जिन के आनन्दित स्वरूप में, जन आनन्द समाता है ॥ जन्म दिवस की शुभ वेला में, गुरुवर का हो अभिनन्दन । जग द्वाराअचित चरणों में, करुणामय ! शत-शत वन्दन ॥
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