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श्री आनन्दन ग्रन्थ
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श्री आनन्द ग्रन्थ
D पुरातत्त्वाचार्य पद्मश्री मुनि श्री जिनविजय जो चन्देरिया, चित्तौड़गढ़
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पुरातत्त्व मीमांसा
'पुरातत्त्व' यह एक संस्कृत शब्द है । सामान्यतया अंग्रेजी में जिसको 'एण्टी क्विटीज' (Antiquities) कहते हैं उसी अर्थ में इस शब्द का प्रयोग होता है । पुरातत्त्व अर्थात् पुरातन, जूना, पुराणा और संशोधन अर्थात शोध-खोज । जूनी पुरानी वस्तुओं की शोध-खोज करना ही पुरातत्त्व संशोधन कहलाता है । भारत की पुरातन वस्तुओं की शोध-खोज किस प्रकार हुई और किन-किन संस्थाओं तथा किन-किन व्यक्तियों ने इस कार्य में विशेष भाग लिया -- इसका कुछ दिग्दर्शन कराना मेरे इस निबन्ध का मुख्य उद्देश्य है ।
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मनुष्य एक विशेष बुद्धिशाली प्राणी है । इसलिए प्रत्येक वस्तु को जानना अर्थात् जानने की इच्छा - जिज्ञासा होना उसका मुख्य स्वभाव है । आत्मा के अमरत्व में विश्वास करने वाले प्रत्येक आस्तिक मनुष्य के मत से प्रत्येक प्राणी में उसके पूर्व संचित संस्कारों के अनुसार न्यूनाधिक मात्रा में ज्ञान का विकास होता है । मनुष्य प्राणी सब प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता है, इसका कारण यह है कि उसमें अन्य जीवजातियों की अपेक्षा ज्ञान का विकास सर्वाधिक मात्रा में होता है। ज्ञान के विकास अथवा प्रसार का मुख्य साधन वाणी अर्थात् भाषा है, और इस वाणी का व्यक्त स्वरूप सम्पूर्ण रीति से मनुष्य जाति में ही विकसित हुआ है । इसीलिए दूसरे देहधारी जीवात्माओं की अपेक्षा मनुष्यात्मा में ज्ञान का विशेष विकास होना स्वाभाविक है | मनुष्य जाति में भी व्यक्तिगत पूर्व संचित संस्कारानुसार ज्ञान के विकास में अपरिमित तारतम्य रहता है । संसार में ऐसे भी मनुष्य दृष्टिगोचर होते हैं कि जिनमें ज्ञान शक्ति का लगभग नितान्त अभाव होता है और जो मनुष्य रूप में प्रायः साक्षात् अबुद्ध पशु जैसे होते हैं । इसके विपरीत, ऐसे भी मनुष्य उत्पन्न होते हैं कि जिनमें ज्ञानशक्ति का अपरिमेय रूप से विकास होता है, और वे पूर्ण प्रबुद्ध कहलाते हैं । प्राचीन भारतवासियों में अधिकांश का तो यहाँ तक पूर्ण विश्वास था कि इस ज्ञानशक्ति का किसी-किसी व्यक्ति में सम्पूर्ण विकास होता है अथवा हो सकता है जिससे उसको इस जगत के समस्त पदार्थों का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो सकता है, विश्व की दृश्य अथवा अदृश्य वस्तुओं में से कोई भी वस्तु उसको अज्ञात नहीं होती। ऐसे व्यक्ति को आर्य लोगों ने सर्वज्ञ नाम से कहा है । आर्यों के इस बहु
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