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पंचास्तिकाय में पुद्गल
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राजवार्तिक में २८ परमाणु का वर्णन सूक्ष्मता से किया है। परमाणु जो स्वयं आदि है स्वयं ही वह अपना मध्य है और स्वयं ही अन्त्य है। इसी के कारण वह इन्द्रियों से किसी भी तरह ग्राह्य नहीं हो सकता। ऐसा जो अविभागी पुद्गल है उसे परमाणु कहा है। आधुनिक युग के विज्ञान द्वारा जिस परमाणु का विस्फोट किया है, वह वास्तव में परमाणु नहीं अपितु यूरेनियम एवं हाइड्रोजन तत्त्वों के एक कण हैं। कण और परमाणु में बहुत अन्तर है। कण के टुकड़े हो सकते हैं, परन्तु परमाण के नहीं। बौद्ध तथा वैशेषिक दर्शन ने इसी का समर्थन किया है।
विज्ञान की मान्यतानुसार संसार के पदार्थ ६२ मूल तत्वों से बने हैं, जैसे सोना, चांदी आदि । इन तत्वों को उन्होंने अपरिवर्तनीय माना है। परन्तु जब रदरफोर्ड और टौमसन ने प्रयोगों द्वारा पारा के रूपान्तर से सोना बनाने की किमया सिद्ध की है और बताया कि सब द्रव्यों के परमाणु एक से ही कणों से मिलकर बने हैं और परमाणुओं में ये (Alpha) कण भरे पड़े हैं । इसी अल्फा (Alpha) कणों का गलन-पूरण द्वारा परिवर्तन संभवनीय है । पारा, सोना, चांदी आदि पुद्गलद्रव्य की भिन्न-भिन्न पर्यायें हैं।
पानी एक स्कन्ध है। संसार के सभी पुद्गल स्कन्धों का निर्माण परमाणुओं से हुआ है। यह हम पहले कह आये हैं। पानी की बूंद को खण्ड-खण्ड करते हुए एक इतना नन्हा सा अंश बनायेंगे कि जिसका पुनः खण्ड न हो। यही स्कन्ध (Molecule) ऑक्सीजन और हाइड्रोजन से बना है। अतः जल के स्कन्ध में तीन परमाणु होते हैं । एक परमाणु ऑक्सीजन और दो परमाणु हाइड्रोजन के [H,0]। इसी प्रकार अन्य पदार्थों के स्कन्धों में भी परमाणुओं की संख्या भिन्न-भिन्न पाई जाती है। इन्हीं परमाणुओं के संघात से निर्मित स्कन्ध के छः भेद हैं। इसी का वर्णन हम निम्नोक्त वर्गीकरण के अन्तर्गत करेंगे
(१) परमाणु एक सूक्ष्मतम अंश है। (२) वह नित्य अविनाशी है ।
(३) परमाणुओं में रस, गंध, वर्ण और दो स्पर्श-स्निग्ध अथवा रूक्ष, शीत या उष्ण होते हैं।
(४) परमाणुओं के अस्तित्व का अनुमान उससे निर्मित स्कन्धों से लगाया जा सकता है। परमाणुओं के या स्कन्धों२६ में बन्ध से बने स्कन्ध संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी या अनन्त प्रदेशी हो सकते हैं। सबसे बड़ा स्कन्ध अनन्त प्रदेश वाला है। अनन्त प्रदेशी की यह विशेषता है कि वह एक प्रदेश में भी व्याप्त होकर या लोकव्यापी होकर रह सकता है। समस्त लोक में परमाणु ० है, उसकी गति के विषय में भगवती में3१ कहा है कि 'वह एक समय में लोक के पूर्व अन्त से पश्चिम अंत तक, उत्तर अंत से दक्षिण अंत तक गमन कर सकता है। उसकी स्थिति कम से कम एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात समय३२ तक है। यही बात उत्तराध्ययन में 3 अन्य ढंग से प्रस्तुत की गई है। स्कन्ध और परमाणु सन्तति की अपेक्षा अनादि-अनन्त और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं।
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२८ तत्त्वार्थराजवार्तिक श२५ २६ तत्त्वार्थसूत्र अ० ५, ३० उत्तराध्ययन ३६/११ ३१ भगवती १८/११ ३२ वही ५/७ ३३ उत्तराध्ययन ३६/१३
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