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अपामप्रवभिनआचार्यप्रवर अभी श्राआनन्द अन्यश्रीआनन्द अन्न
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- प्रवर्तक श्री विनयऋषि जी [संस्कृत-प्राकृत के विद्वान, विद्याप्रेमी, समाजसुधारक |
या धर्म का सार्वभौम रूप
विश्व के विराट् सुनहले क्षितिज पर असंख्य अपरिमित धर्मों का उदय हो चुका है। प्रस्तुत दृश्यमय जगत पर भी धर्मों का अमिट प्रभाव परिलक्षित होता है। धर्म से ब्रह्माण्ड का कोई स्थान अछूता नहीं है और न उसके अभाव में किसी वस्तु के अस्तित्व की ही कल्पना की जा सकती है। विस्तृत संसार में धर्म विभिन्न नाम, रूपों में व्याप्त है। इस मनुपुत्र की धरती पर धर्मों का जालसा फैला हुआ है । प्रमुख रूप से एशिया, आफ्रिका, यूरोप, आस्ट्रेलिया, अमरिका आदि महाद्वीपों में प्रचलित धर्मों की संख्या तेरह के लगभग मानी गई है। मिसाल के तौर पर..."जैन, बौद्ध, हिन्दू, सिक्ख, पारसी, ईसाई, इस्लाम, कन्फ्युशियस, ताओ, शिन्नो, शैव, शाक्त-वैष्णव आदि प्रचलित धर्म हैं।
विश्व में प्रचलित धर्मों की यह तालिका संकीर्णता की सूचक है। वस्तुतः सभी धर्मों के प्रेरणा-स्रोत उनके प्रवर्तक संस्थापकों की व्यक्तिगत अन्तर्दृष्टियां हैं। अनुपम आध्यात्मिक अनुसंधान के द्वारा जो अन्तर्योति उन्हें प्राप्त हुई, वही उन्होंने संसार के सामने प्रज्ज्वलित की।
धर्म एक अनुपम पुष्प है। सभ्य-असभ्य जातियों ने किसी-न-किसी रूप में इसे अपनाया है। किन्तु यह संकीर्णता धर्म के सार्वभौम रूप को विच्छिन्न कर देती है। हर धर्म का उदय सार्वभौम रूप में होता है, किन्तु आगे चलकर उसके प्रबल समर्थक उसे Limited रूप दे देते हैं । मानव-जीवन के हर क्षेत्र को जो धर्म प्रभावित कर सके, व्याप्त कर सके, भेद-भावों की दीवारें तोड़ सके, उसी में सार्वभौम पद की क्षमता निहित है।
प्रत्येक जिज्ञासु, साधक आत्मा में यह प्रश्न उपस्थित है कि धर्म का वह सार्वभौम रूप क्या है ? उसकी परिभाषा क्या हो सकती है ? इत्यादि अन्तर्मन में उठे हुए प्रश्न प्रत्युत्तर के लिए कटिबद्ध हैं। संसार भर के विचारकों, चिन्तकों, और ऋषि-मुनियों ने शाब्दिक एवं साहित्यिक परिभाषाएँ या व्याख्याएँ देने का एक स्तुत्य प्रयोस किया है। उदाहदण के तौर पर शाब्दिक परिभाषा को हम देखें, जैसे
___“धिन्वनाद् धर्म' अर्थात् धिन्वन का अर्थ है धारणा या आश्वासन देना। 'धारणाद् धर्मः' अर्थात् धारणा या दुःख से बचाना । 'ध्रियते येन स धर्मः' अर्थात् जिसने इस विश्व को धारण किया है, वही धर्म है।
शाब्दिक व्याख्याओं की तरह साहित्यिक परिभाषाएं भी हमारे सामने पर्याप्त रूप में आती हैं
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