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धर्म और दर्शन
है कि परमाणुवाद के सिद्धान्त को जन्म देने का श्रेय जैनदर्शन को ही मिलना चाहिए ।२८ उपनिषद् साहित्य में अण शब्द का प्रयोग हआ है किन्तु परमाणवाद का कहीं भी नाम नहीं है। वैशेषिकों का परमाणुवाद संभव है उतना पुराना नहीं है।
जैन साहित्य में परमाणु के स्वरूप और कार्य का सूक्ष्मतम विवेचन किया है, वह आज के शोधकर्ता विद्यार्थी के लिए अतीव उपयोगी है।
परमाणु का जैसा हमने पूर्व लक्षण बताया कि वह अछेद्य है, अभेद्य है, अग्राह्य है, किन्तु आज के वैज्ञानिक विद्यार्थी को परमाणु के उपलक्षणों में सहज सन्देह हो सकता है, क्योंकि विज्ञान के सूक्ष्म यंत्रों में परमाणु की अविभाज्यता सुरक्षित नहीं है।
परमाणु यदि अविभाज्य न हो तो उसे परम-अणु नहीं कह सकते । विज्ञान-सम्मत परमाणु टूटता है, इससे हम इन्कार नहीं होते। जैन आगम अनुयोगद्वार में परमाणु के दो प्रकार
बताए हैं-२६
१. सूक्ष्म परमाणु २. व्यावहारिक परमाणु
सूक्ष्म परमाणु का स्वरूप वही है जो हमने पूर्व बताया है किन्तु व्यावहारिक परमाणु अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं के समुदाय से बनता है।3° वस्तुवृत्या वह स्वयं परमाणु-पिंड है तथापि साधारण दृष्टि से ग्राह्य नहीं होता और साधारण अस्त्र-शस्त्र से तोड़ा नहीं जा सकता । उसकी परिणति सूक्ष्म होती है एतदर्थ ही उसे व्यवहाररूप से परमाणु कहा है। विज्ञान के परमाणु की तुलना इस व्यावहारिक परमाणु से होती है। इसलिए परमाणु के टूटने की बात एक सीमा तक जैनदृष्टि को भी स्वीकार है ।
पुद्गल के बीस गुण हैंस्पर्श-शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध, लघु, गुरु, मृदु, और कर्कश । रस--आम्ल, मधुर, कद, कषाय और तिक्त । गन्ध-सुगन्ध और दुर्गन्ध । वर्ण-कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत । यद्यपि संस्थान, परिमंडल, वृत्त, व्यंश, चतुरंश ___आदि पुद्गल में ही होता है तथापि वह उसका गुण नहीं है ।३१
सूक्ष्म परमाणु द्रव्य-रूप में निरवयव और अविभाज्य होते हुए भी पर्यायदृष्टि से उस प्रकार नहीं है । उसमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श ये चार गुण और अनन्त पर्याय होते हैं । ३२ एक परमाणु में एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श (शीत, उष्ण, स्निग्ध-रूक्ष, इन युगलों में से एक-एक) होते हैं। पर्याय की दृष्टि से एक गुण वाला परमाणु अनन्त गुण वाला हो जाता है और अनन्त गुण वाला परमाणु एक गुण वाला है। एक परमाणु में वर्ण से वर्णान्तर, गन्ध से गन्धान्तर, रस से रसान्तर और स्पर्श से स्पर्शान्तर होना जैन-दृष्टि-सम्मत है । ३२
२८ दर्शनशास्त्र का इतिहास पृ० १२६ २६ परमाणु दुविहे पन्नते, तं जहा सुहमेय, ववहारियेय । -अनुयोगद्वार (प्रमाणद्वार) ३० अणंताणं सुहुमपरमाणु पोग्गलाणं समुदयसमिति समागयेणं ववहारिए परमाणु पोग्गले निफ्फज्जति ।
-अनुयोगद्वार (प्रमाणद्वार) ३१ भगवती० २५॥३ ३२ चउविहे पोग्गल परिणामे पन्नते, तं जहा-वण्णपरिणामे, गंधपरिणामे, रसपरिणामे, फासपरिणामे।
-स्थानांग ४।१३५
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