________________
8 श्री आनन्द अन्थ 99 श्री आनन्द
909
श
अभिनंदन
[मानव जीवन का महत्व, कर्तव्य और श्रम निष्ठा के साथ उसकी सफलता सम्पादन करने की उदात्त प्रेरणा ]
१७ ॐघै मत बटोही !
यह संसार विराट् है । जीव इस विराट् सृष्टि में नाना गतियों और नाना योनियों में भ्रमण करता आ रहा है । क्योंकि सभी प्राणी अपने-अपने संचित कर्मों के कारण ही संसार में आते जाते हैं और कर्मअनुसार भिन्न-भिन्न योनियों में पैदा होते रहते हैं ।
इसीलिए कहा है
सव्वे सयकम्म कप्पिया अवियत्तेण दुहेण पाणिणो । हिण्डन्ति भयाउला सढा जाइजरा मरणेहिऽभिदुया ||
- सूत्र० २-१८
अर्थात् प्राणी जन अपने-अपने कर्मों के अनुसार भिन्न-भिन्न योनियों को प्राप्त हुए हैं । कर्मों की अधीनता के कारण एकेन्द्रिय आदि की अवस्था में वे दुखी रहते हैं। अशुभ कर्मों के कारण जन्म, जरा और मरण से सदा भयभीत रहकर गति चतुष्टय के रूप में संसार में भटकते रहते हैं ।
सुनकर तनिक आश्चर्य होता है किन्तु गम्भीरतापूर्वक विचार करने पर इसकी सचाई का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । क्योंकि हम अपनी आँखों से भी इस भूतल पर अनेक प्रकार के जीव जन्तुओं को देखते हैं। अनेक जीव आकाश में उड़ते हैं, अनेक पृथ्वी पर चलते हैं तथा अनेकानेक जीव जल में तैरते हुए अपना जीवन व्यतीत करते हैं। इसके अलावा इस दिखने वाली पृथ्वी तक ही सीमित नहीं
हैं । इसके ऊपर स्वर्ग है और नीचे नरक है, जिनमें देवता और नारकी अपना जीवनयापन करते हैं । अनन्तानन्त तिर्यच जीव भी इसी संसार में रहते हैं। भले ही हम पूर्णतया इस जीव जगत की विशालता को न जान सकें पर कल्पना अवश्य कर सकते हैं।
Jain Education International
अनमोल मानव जीवन
顅 इसी विराट् संसार में हमने भी जन्म लिया है। हमारा जीव भी अनन्तकाल से असंख्य योनियों
में जन्म लेता हुआ आज मानवयोनि को प्राप्त कर सका है। दूसरे शब्दों में कहें, उसे अनन्तानन्त कष्ट
सहने के बाद तथा असंख्य कठिनाइयों को पार करने के पश्चात्
महान् पुण्य कर्मों के संचय के फलस्वरूप यह मानवजीवन प्राप्त हुआ है। इस मानवजीवन की प्राप्ति के लिए तो देवता भी तरसते हैं
तओ ठाणाई देवे पिज्जा - माणुस्तं भवं, आरिएखेत्ते जम्मंसुकुलपच्चायांति ॥
— देवता भी तीन बातों को चाहते हैं । उनमें सबसे पहली है— मनुष्य जीवन और इस मनुष्य जीवन की प्राप्ति के साथ ही आर्यक्षेत्र में जन्म और श्रेष्ठ कुल की प्राप्ति । अर्थात् सबसे पहले मनुष्य जीवन की प्राप्ति दुर्लभ है । अतएव विचार करने की बात है कि असंख्य योनियों से बचकर मनुष्य योनि प्राप्त
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org