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मन की महिमा
यह अकाट्य सत्य है कि हमसे पूर्व इस संसार में जो विदेह बन कर रहे हैं, उनकी आत्मा से हमारी आत्मा किसी भी दृष्टि से हीन नहीं है। उनकी आत्मा के समान ही हमारी आत्मा भी अनन्त बलशाली और अनन्त ज्ञान की अधिकारिणी है । आवश्यकता केवल उसे जगाने की है तथा उस पर पड़े हुए आवरणों को हटाकर उसकी शक्ति, ज्ञान और तेज को प्रकाश में लाने की है और यह तभी प्रकाशित हो सकती है जब कि अज्ञान और मिथ्यात्व का पर्दा उस पर से हटा दिया जाये और कषाय, विषय-वासनाओं की मलिनता के स्थान पर वैराग्य की पवित्र भावनाओं को स्थापित किया जाये। कषायों का संयोग हमारे मन, वचन और काया इन तीनों योगों में से किसी के भी साथ न होने पाये जो कि कर्मबंधन का कारण बनता है । जो भव्य प्राणी ऐसा कर सकेंगे वे निश्चय ही अपने दुर्लभ मानवजीवन को सार्थक बनायेंगे ।
आनन्द-वचनामृत
- राम और रावण-दोनों ही शलाकापुरुष थे, दोनों ही वीर थे, और विद्वान
भी थे, फिर क्या कारण है कि राम को संसार पूजता है, रावण को गालियाँ देता है ? कारण यही है कि रावण इच्छाओं का दास था और राम इच्छाओं के स्वामी।
0 मूर्ख दो प्रकार के होते हैं-एक वह जो अपनी भूल को भूल के रूप में स्वीकार
नहीं करता, दूसरा वह जो-दूसरों की भूल का दुनिया में ढोल पीटता है। समझदार मनुष्य-अपनी भूल को स्वीकार करता और दूसरों की भूल देखकर चुप रहता है।
1 मोक्ष का अधिकारी कौन ? जिसके अन्तर में मुमुक्षा-मुक्ति पाने की इच्छा लगी हो।
कषाय से मुक्ति विकारों से मुक्ति
परिग्रह से मुक्ति इन तीनों से मुक्ति पाने की इच्छा रखने वाला ही मोक्ष का अधिकारी है।
ف تاة تدعيععيععمر سے شرعی اعتماعیمعرفیعی
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साया
आनन्द-ग्रन्थ श्राजिन्दग्रन्थ
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