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[ऊनोदरी के गुण-ज्ञानार्जन, स्वाध्याय-कायोत्सर्ग आदि में अल्पभोजन सहायक । कम खाप सो मुख पाप आदि विषयों का स्पष्टीकरण]
१२ कम खाए, सुख पाए
ज्ञान आत्मा का निजी गृण है तथा वही आत्मा को संसार से मुक्त करने की शक्ति रखता है। इसकी महत्ता के विषय में जो कुछ भी कहा जाये, कम है। फिर भी विद्वान अपने शब्दों में इसके महत्त्व को बतलाने का प्रयत्न करते हैं। एक श्लोक में कहा गया है
तमो धुनीते कुरुते प्रकाशं,
शमं विधत्त विनिहन्ति कोपम् । तनोति धर्म विधुनोति पापं,
ज्ञानं न किं किं कुरुते नराणाम् ॥ बताया गया है कि एक मात्र ज्ञान ही अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करके आत्मा में अपना पवित्र प्रकाश फैलाता है तथा उसके समस्त निजी गुणों को आलोकित करता है।
ज्ञान ही आत्मिक गुणों को नष्ट करने वाले क्रोध को मिटाकर उसके स्थान पर समभाव को प्रतिष्ठित करता है, तथा पापों को दूर कर आत्मा में धर्म की स्थापना करता है । अन्त में संक्षेप में यही कहा गया है कि ज्ञान मनुष्य के लिये क्या-क्या नहीं करता? अर्थात् सभी कुछ करता है जो आत्मा के लिये कल्याणकारी है। ज्ञानी और अज्ञानी में अन्तर
इस संसार में ज्ञानी और अज्ञानी, दोनों प्रकार के प्राणी पाये जाते हैं। ज्ञानी पुरुष के होते हैं जो अपने बिवेक और विशुद्ध विचारों के द्वारा अपनी इन्द्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण रखते हैं तथा ज्ञान के आलोक में आत्म-मुक्ति के मार्ग को खोज निकालते हैं, किन्तु अज्ञानी व्यक्ति इसके विपरीत होते हैं। विषय-भोगों को उपादेय मानते हैं, और उन्हें भोग न पाने पर भी भोगने की उत्कट लालसा रखने के कारण निरंतर कर्मबंधन करते रहते हैं तथा अंत में अकाम मरण को प्राप्त होकर पुनः जन्म-मरण करते रहते हैं। इसीलिये ज्ञानी और अज्ञानी में अन्तर बताते हुए कहा गया है
जं अन्नाणी कम्म खवेइ बहयाई वास कोडीहि ।
___ तं नाणी तिहि गुत्तो खवेइ उस्सास मित्तण ॥ अर्थात् जिन कर्मों को क्षय करने में अज्ञानी करोड़ों वर्ष व्यतीत करता है, उन्हीं कों को ज्ञानी एक श्वासमात्र के काल में ही नष्ट कर डालता है।
बन्धुओ ! ज्ञानी और अज्ञानी की क्रिया में कितना अंतर है ? ज्ञान का माहात्म्य कितना जबर्दस्त है ? इसीलिये तो धर्मग्रन्थ तथा धर्मात्मा पुरुष सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति पर बल देते हैं। कहते हैं-अपने मन और मस्तिष्क की समस्त शक्ति लगाकर भी ज्ञान हासिल करो । ज्ञान हासिल करने के लिये वे अनेक उपाय भी बताते हैं। उनमें से ज्ञानप्राप्ति का एक उपाय है- ऊनोदरी करना । ऊनोदरी को हमारे यहाँ तप
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