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[मन्व- कैमा, किस में और कैसे मिले ? इस अबूझ पहेली का अनुभव पूर्ण विश्लेषण ।]
९ सुख की खोज
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___ इस विराट् विश्व में हम देखते हैं कि मनुष्य से लेकर पशु-पक्षी तथा छोटे-से-छोटे-कीट-पतंग भी सुखप्राप्ति की इच्छा रखते हैं तथा उसके लिए अपनी शक्ति के अनुसार दौड़धूप करते रहते हैं । सभी को सुख प्रिय है और दुःख अप्रिय, अतः सुख को प्राप्त करना और दुःख से बचना चाहते हैं।
फिर भी महान् आश्चर्य की बात है कि कोई भी प्राणी अपने आपको सुखी अनुभव नहीं करता। सभी अपनी स्थिति से असन्तुष्ट रहते हैं। किसी को पुत्र का अभाव पीड़ित कर रहा है, कोई धनाभाव से दुखी हो रहा है, कोई रोग के फन्दे में जकड़ा हुआ है, किसी को पारिवारिक क्लेश सता रहा है, किसी के पास मकान नहीं है, किसी को व्यापार में घाटा हो रहा है और कोई कन्या के विवाह के लिए चिन्तित हो रहा है । इस प्रकार जिधर देखो और जिस व्यक्ति को देखो, वही किसी-न-किसी प्रकार के दुःख, शोक, चिन्ता, व्याकुलता तथा व्याधि आदि के कारण अशांत और दुखी दिखाई देता है।
संसार की ऐसी स्थिति के कारण जिज्ञासु व्यक्तियों के अन्तःकरण में यह जानने की इच्छा बलवती होती है कि आखिर इसका कारण क्या है ? जिससे प्राणी सुख की अभिलाषा रखते हुए तथा सुख के लिए प्रयत्न करते हुए भी सुख को हासिल नहीं कर पाता । सांसारिक सुख हितोपदेश के एक श्लोक में सुख के विषय में बताया है
अर्थागमो नित्यमरोगिता च, प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च । वश्यश्च पुत्रोऽर्थकरी च विद्या,
षड् जीवलोकस्य सुखानि राजन् । कहा है-हे राजन् ! नित्य धन का लाभ, आरोग्यता, प्रिय और प्रियवादिनी स्त्री, आज्ञाकारी पुत्र तथा धन को प्राप्त कराने वाली विद्या-ये संसार के छह सुख हैं।
इस प्रकार संसार में छह प्रकार के सुख बताये गये हैं। किन्तु हम दीर्घदृष्टि से विचार करते हैं तो निश्चय ही महसूस होता है कि धन से सच्चे सुख की प्राप्ति कहाँ सम्भव है ? धन से न हम असाध्य रोगों को मिटा सकते हैं, न उससे युवावस्था को स्थिर रखकर बुढ़ापे को आने से रोक सकते हैं और न ही धन की बदौलत मौत से ही बच सकते हैं। जरा ध्यान से विचार करने की बात है कि इस संसार में धन से कौन सुखी होता है ?
देवलोक में देवता भी सुखी नहीं हैं। उनके पास प्रचुर वैभव होता है, विमान होते हैं, सुन्दर देवियाँ होती हैं । किन्तु देवताओं को भी अपने वैभव से सन्तोष नहीं होता और वे दूसरे देवों की समृद्धि देख-देखकर असन्तोष और ईर्ष्या की आग में जलते रहते हैं।
हम पृथ्वीपति राजाओं को देखें तो वे भी सुखी नहीं हैं। उनके यहाँ अत्यधिक दास-दासियां, सेना, खजाना आदि होता है। उन्हें भी अन्य राजाओं के आक्रमणों से अपने राज्य की रक्षा की चिन्ता रहती है।
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आचार्यप्रवभिनआचार्यप्रवर आभार श्रीआनन्दग्रन्थ श्रीआनन्द अन्य
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