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श्री आनन्दत्र ग्रन्थ श्री आनन्द
श
ग्रन्थ
[ जीवनमहल की नींव विचार हैं, विचार ही आचार का आधार है, विचार व भाव का महत्त्व प्रदर्शित कर भावशुद्धि का समर्थ संयोजना का उपदेश । ]
५ जीवन महल की नींव : विचार
कबीरदास का एक प्रसिद्ध दोहा है-
समझा समझा एक है, अनसमझा सब एक । समझा सोई जानिये, जाके हृदय विवेक ॥
जिस हृदय में विवेक का विचार का दीपक जलता है, वही हृदय देवमन्दिर तुल्य है, जिस हृदय में विवेक, विचार का दीपक नहीं है, वह अन्धकारमय हृदय श्मशान के समान है ।
जब तक हृदय में विवेक तथा विचार की ज्योति नहीं जलती तब तक कोई कितना ही उपदेश दे, समझाए - बुझाए, शास्त्र सुनाए, सब भैंस के आगे बीन बजाने के समान है, अंधे के सामने कत्थक नृत्य दिखाने के बराबर है और बहरे के समक्ष गीत गाने के तुल्य है । विचारशुन्य मनुष्य कभी भी भले-बुरे का हित-अहित का निर्णय नहीं कर सकता । इसलिए कहा है- आँख का अंधा संसार में सुखी हो सकता है किन्तु विचार का अंधा कभी भी सुखी नहीं हो सकता, विचारांध को स्वयं ब्रह्मा भी सुखी नहीं कर सकते ।
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बन्धुओ ! विचार, विवेक जीवनमहल की नींव है। सुरम्य प्रासाद, आलीशान भवन और आकाश से बातें करने वाले महल आखिर किस पर टिके होते हैं ? नींव पर ! यदि महल की नींव नहीं है या नींव कमजोर है तो प्रथम तो ऊंचा महल खड़ा ही नहीं हो सकता, यदि महल खड़ा कर दिया तो कितने दिन टिकेगा ? पास से निकलने वालों की जान को भी और जोखिम ! तो जीवन में यदि विचार नहीं है, विवेक तथा भावना नहीं है तो वह जीवन, मानव का जीवन नहीं कहला सकता ! वह जीवन निरा पशुजीवन है ।
आप सोच रहे होंगे कि जिस विचार का जीवन में इतना महत्वपूर्ण स्थान है, वह विचार क्या है ? उसका अर्थ क्या है ? वैसे तो मनुष्य विचारशील प्राणी है, विचार करना उसका स्वभाव है । शास्त्र में बताया है, प्राणी नरक में अत्यन्त दुखी रहता है, स्वर्ग में अत्यन्त सुखी । नरक की यंत्रणाओं में, वेदनाओं में उसे कुछ विचार सूझता नहीं और स्वर्ग के सुखों में उसे विचार करने की फुरसत नहीं । इस प्रकार स्वर्ग और नरक की योनियाँ तो विचारशीलता की दृष्टि से शून्य हैं । तिर्यंचगति में प्राणी विवेकहीन रहता है । तिरिया विवेगविकला - तिर्यच विवेक - विकल - रहित होते हैं । उनमें बुद्धि, भावना, विचार और विवेक जैसी योग्य शक्ति नहीं होती। फिर मनुष्ययोनि ही एक ऐसी योनि है, मानव-जीवन ही ऐसा जीवन है जिसमें विचार करने की क्षमता है, शक्ति है, विवेक व बुद्धि की स्फुरणा है, योग्यता है । इसलिए हम कह सकते हैं कि विचार मनुष्य की विशिष्ट संपत्ति है ।
विचार का अर्थ सिर्फ सोचना भर नहीं है । पहले सोच, फिर विचार । यानी सोचने के आगे की भूमिका है विचार | भारत के चिन्तनशील मनीषियों ने कहा है
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