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आयर्मप्रवभिआपार्यप्रवरभि
अथ श्रीआनन्दारिदन
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आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
स्पर्ण सहज अनुभव किया
अमित पथिक के लिए प्रकाश
में अथाह सागर का
उनके मन की निर्मलता, सरलता, सौम्यता और भद्रता उनकी वाणी में पद-पद पर प्रस्फुटित होती परिलक्षित होगी। उनके अन्तरस में वैराग्य की जो पावनधारा प्रवाहित हो रही है, वाणी में उसका शीतल स्पर्श सहज अनुभव किया जा सकता है।"
संतों के प्रवचन अंधकार में भ्रमित पथिक के लिए प्रकाश-स्तम्भ की भांति हैं। विमोह-मूढ़ इन्सान को ये ही प्रवचन सन्मार्ग पर लाकर खड़ा कर देते हैं। जिस प्रकार रात में अथाह सागर की उत्ताल तरंगों से भयभीत नाविक दिशा-ज्ञान खो बैठता है और धीरे-धीरे आश्वस्त होकर ध्रुव की ओर उसकी आँखें टिक जाती हैं तथा वह गन्तव्य का परिज्ञान कर लेता है, उसी प्रकार पूज्य आनन्दऋषि के ये प्रवचन संसार-सागर की उद्वेलित लहरों से पग-पग पर चिन्तित मानव को धैर्य प्राप्त कराते है । इसीलिए कहा गया है कि ये प्रवचन ध्रुव की भांति दिशा-सूचक एवं लक्ष्य के परिचायक हैं। प्रबुद्ध इंसान की अनुभूतियाँ इनमें स्पन्दित हैं, भावुक काव्यकार की भावुकता इनमें जीवित है एवं सूर्य की आलोक-रश्मियाँ यहाँ दीप्त हैं। इस प्रकार की सैकड़ों कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें बताया गया है कि सुभाषितों अथवा प्रवचनों को सुनकर श्रोता ने पर्याप्त धन कहनेवाले को दिया है तथा अवसर पर उसने अपने पुत्र को बचाया, पत्नी को पथभ्रष्ट न होने दिया तथा फांसी के तख्ते पर खड़े हुए निर्दोष को जीवन-दान दिया। पुरातन काल में एक-एक प्रवचन लाखों में बिकता था और मोल लेनेवाले सहर्ष इन्हें खरीदते थे। "एक लाख की एक बात," "चार लाख की एक सूझ", "जान से प्यारी एक बात", "एक अरब का एक हार" आदि ऐसी ही कथाएँ हैं जिनमें प्रवचनों के महत्त्व को बड़ी श्रद्धा में आंका गया है।
"संसार की समस्त ऋद्धि-सिद्धि और समृद्धि में वाणी एक अद्भुत उपलब्धि मानी गई है। वाणी से उद्भुत एक सुवचन-सुभाषित संसार के समस्त रत्नों से भी अधिक मूल्यवान होता है। वास्तव में तो सुभाषित ही सच्चा रत्न है। प्राचीन आचार्यों ने कहा है
पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् ।
मूढः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते । पृथ्वी में असली रत्न तो तीन ही हैं-जल, अन्न एवं सुभाषित । बाकी रत्न तो पत्थर के टुकड़े हैं । जल और अन्न फिर भी सीमित मूल्य रखते हैं । जड़ शरीर की भूख-प्यास बुझाते तो हैं किन्तु क्षणिक ही। वाणी अन्तर्मन को क्षुधा एवं तृषा को शांत करती है सदा-सर्वदा के लिए। एक नन्हा-सा दो-चार शब्दों का सुभाषित भी जीवन में आमूलचूल परिवर्तन ला सकता है, मन को नया मोड़ दे सकता है और अन्धकार में ठोकरें खाते मानव के लिए प्रकाश की प्रखर किरण बन सकता है।"२
आचार्यदेव श्री आनन्दऋषि के प्रवचनों को साधारणतः निम्नस्थ रूपों में विभाजित किया जा सकता है। मेरी राय में सुभाषित और सूक्तियाँ प्रवचन के ही रूपान्तर हैं। एक के ही ये दो रूप हैं।
(१) धर्म सम्बन्धी प्रवचन । (२) अर्थ सम्बन्धी प्रवचन । (३) काम सम्बन्धी प्रवचन ।
(४) मोक्ष सम्बन्धी प्रवचन । इन चार रूपों पर हमें व्यापकता से विचार करना आवश्यक है। सकीर्ण चिन्तन हमारे ध्येय की परिपुष्टि में बाधक हो सकता है। कई प्रवचन तो ऐसे हैं जिनमें उक्त चार तत्त्वों का समाहार हो गया है लेकिन कतिपय प्रवचन एक विशिष्ट विचारधारा के ही समर्थक हैं।
१ आनन्द प्रवचन, भाग १, प्रारम्भिक पृष्ठ ६-७ २ उपाध्याय श्री अमरमुनि
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