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मुख्यमन्त्री महाराष्ट्र,
सचिवालय, बम्बई २२ बी. आर.
दिनांक : २ जनवरी १९७५
आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी महाराज का जन्म महाराष्ट्र के अन्दर अहमदनगर जिले के चिंचोडी नामक गांव में हुआ और ह वर्ष की आयु में ही स्थानकवासी समाज के पूज्यनीय स्वर्गवासी १००८ श्री रत्न ऋषि जी महाराज से दीक्षा ग्रहण की, आज वे जीवन के ७५वें वर्ष में चल रहे हैं । उन्होंने जैन समाज को ही नहीं, बल्कि अखंड भारत में सब मानव जाति के सर्वांगीण उन्नति के लिए अनेक प्रयास किये और लगभग १२ वर्ष पूर्व उनको अखिल भारतीय स्थानकवासी समाज के आचार्य सम्राट-पद पर विराजित किया गया और आज भी वे इस पद को विभूषित कर रहे हैं। यह महाराष्ट्र के लिए गौरव की बात है।
पूज्य आचार्य श्री ने आज तक अनेक ग्रन्थ लिखे हैं और समाज के कमजोर गरीब लोगों के लिए कई एक हाईस्कूल, कॉलेज और छात्रालय प्रारम्भ किये हैं। वैसे प्राकृत विद्यापीठ और प्राकृत भाषा को महत्त्व देकर हजारों विद्यार्थी उसका लाभ उठाते हैं। ऐसे महान संत पुरुष का अमृत महोत्सव होना अत्यन्त आवश्यक है। उससे समाज को प्रेरणा मिलती रहे और देश के लिए, विशेष रूप से महाराष्ट्र के लिये गौरव की बात हो सके।
ऐसे अमृत महोत्सव पर उनका अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है । इस स्तुत्य ग्रन्थ को मेरी शुभ कामना ।
-वसन्तराव नाईक
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